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Pratham Singh in इतिहास
श्वेताम्बर और दिगंबर परम्परा मे क्या अंतर हैं संक्षिप्त वर्णन कीजिये

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Deva yadav
१- स्वरुप -दिगंबर साधू निर्वस्त्र रहते है !श्वेताम्बर साधुगण श्वेतत वस्त्र धारण करते है !
२-आहारचर्या :- दिगम्बए साधु  श्रावक के घर जाकर एक ही स्थान पर खड़े होकर ,२४ घंटे में एक बार ही,कर पात्र में आहार ग्रहण करते है जबकि श्वेताम्बर साधू अनेक घरों से आहार लेकर बैठकर ग्रहण करते है उनमे एक बार आहार ग्रहण करने का नियम नहीं है !
३-मोक्ष गमन:-दिगम्बर परम्परा के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के लिए नग्नत्व आवश्यक है श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार वस्त्र धारण कर मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है !
४- स्त्री मुक्ति:-दिगम्बर परम्परा के अनुसार स्त्रीयां मुक्त नहीं  हो सकती  जबकि श्वेताम्बर परपरा के अनुसार स्त्रियां मुक्त हो सकती है !
५-भगवान् महावीर के विवाह संबंधी:-दिगम्बर परम्परा के अनुसार भगवान् महावीर ब्रह्मचारी थे श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार वे विवाहित थे!
६-केवली निराहार:-दिगंबर परम्परा में केवली को निहार नहीं होता ,श्वेतांबर परम्परा में होता है !
७-केवली को रोग- दिगंबर परम्परा के अनुसार रोग नहीं होता श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार होता है !
८-तीर्थकर स्वयंबुद्ध -दिगंबर परम्परा में होते है श्वेताम्बर में नहीं होते
९-यति के उपकरण -दिगम्बर के अनुसार पिच्छी और कमंडल दो उपकरण होते है डंडा नहीं होता  श्वेतांबर में १४ उपकरण होते है,डंडा भी होता है स्वर्ग-दिगम्बर परम्परा में १६ स्वर्ग और श्वेताम्बर में १४ स्वर्गों का उल्लेख है
१०-दिगंबर परम्परा के अनुसार भगवान् महवीर को उपसर्ग नहीं हुआ ,श्वेतांबर परम्परा के अनुसार उपसर्ग हुआ !हमारा लक्ष्य वीतरागिता का होना चाहिए ,इन बातों में उलझना नहीं चाहिए !केवल इन्हे समझने की कोशिश करनी चाहिए !
११-तीर्थंकर की माता को स्वप्न- दिगम्बर परम्परा में माता को १६ स्वप्न और श्वेताम्बर परम्परा में १४ दीखते है !
१२-भरत महाराज को केवल ज्ञान-दिगंबर परम्परा में उन्हें केवल ज्ञान दीक्षा लेने के उपरान्त अंतर्मूर्हूत में हो गया था श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार घर में ही केवल ज्ञान हो गया था
१३-केवली का आहार//-दिगम्बर परम्परा के अनुसार केवली आहार नहीं लेते श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार आहार लेते है !
इनके अतिरिक्त कुछ और अंतर् है जिनका अवलोकन ;जैन दर्शन गणित' ग्रन्थ में देखा जा सकता है
उक्त प्रमुख कारण है,हमे इन्हे जानना जरूर चाहिए किन्तु  इनमे उलझना नहीं चाहिए !अंततः दोनों परम्पराय भगवान् महावीर सहित २४ तीर्थंकरों के अनुयायी है,उनके मूल सिद्धांत;अहिंसा के 'पुजारी' है !

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