प्राकृतिक संसाधनों का पुन: उपयोग की दृष्टि से इस प्रकार वर्गीकरण किया जा सकता है।
- नवीनीकरणीय संसाधन
- अनवीनीकरणीय संसाधन
कुछ विद्वान इन दोनों वर्गीकरणों के अतिरिक्त अन्य प्राकृतिक संसाधनों के अंतर्गत प्राकृतिक सुरम्य स्थलों को भी सम्मिलित करते हैं।
नवीनीकरणीय संसाधन
इसके अंतर्गत ऐसे संसाधन आते हैं जिनका प्रयोग मानव द्वारा पुन: किया जा सकता है। इन संसाधनों का निर्माण निरन्तर प्रकृति में होता रहता है। मानव के संतुलित प्रयोग से इनमें कमी नहीं आती है और इनका पुन: उपयोग किया जा सकता है। इन्हें तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
- नवीनीकरण और अपरिवर्तनीय संसाधन : इसके अंतर्गत महासागरीय जल, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, मृत्तिका, वायु आदि को शामिल किया जाता है।
- नवीनीकरण लेकिन दुश्पयोजनीय संसाधन : अविवेकपूर्ण उपयोग से ऐसे संसाधनों की मात्रा तथा गुणवत्ता घट जाती है। इसके अन्तर्गत भूमि, वन्य, जीव, जल संसाधन आदि सम्मिलित हैं।
- संपोशणीय और नवीनीकरणीय संसाधन : इन संसाधनों की नवीनीकरणीयता इनके उपयोग की विधि पर निर्भर करती है। इमारती लकड़ी, मानव संख्या, भूमि की उर्वरता, भूमिगत जल आदि को इसमें सम्मिलित किया जा सकता है।
नवीकरणीय संसाधन अथवा नव्य संसाधन वे संसाधन हैं जिनके भंडार में प्राकृतिक /पारिस्थितिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनस्र्थापन होता रहता है। हालांकि मानव द्वारा ऐसे संसाधनों का दोहन (उपयोग) अगर उनके पुनस्र्थापन की दर से अधिक तेजी से हो तो फिर ये नवीकरणीय संसाधन नहीं रह जाते और इनका क्षय होने लगता है। उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ऐसे संसाधनों में ज्यादातर जैव संसाधन आते हैं जिनमें जैविक प्रक्रमों द्वारा पुनस्र्थापन होता रहता है। उदाहरण के लिए एक वन क्षेत्र से वनोपजों का मानव उपयोग वन को एक नवीकरणीय संसाधन बनाता है, किंतु यदि उन वनोपजों का इतनी तेजी से दोहन हो कि उनके पुनस्र्थापन की दर से अधिक हो जाए तो वन का क्षय होने लगेगा।
उदाहरण : सामान्यतया नवीकरणीय संसाधनों में नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन भी शामिल किए जाते हैं जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा इत्यादि। किंतु सही अर्थों मे ये ऊर्जा संसाधन अक्षय ऊर्जा संसाधन हैं न कि नवीकरणीय।
अनवीनीकरणीय संसाधन
अनवीकरणीय संसाधन वे संसाधन होते हैं जिनके भंडार में प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनस्र्थापन नहीं होता है। ऐसे संसाधन जिनका पुन: उपयोग निकट भविष्य में सम्भव नहीं होता उन्हें अनवीनीकरण संसाधन कहा जाता है। एक बार प्रयोग में लेने के पश्चात् इनके पुन: निर्माण में करोड़ों वर्षों का समय लगता है। इसके अंतर्गत खनिज पदार्थ, पेट्रोलियम, कोयला आदि को सम्मिलित किया जाता है। इन्हें तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है।
- संपोशणीय लेकिन अनवीनीकरणीय संसाधन : अत्यधिक दोहन व उपयोग के पश्चात् ऐसे संसाधनों के नवीनीकरण की संभावना नहीं रहती। इनमें मृदा के भौतिक पदार्थ एवं जैव-विविधता शामिल है।
- अनवीनीकरण लेकन पुन: उपयोग योग्य संसाधन : जिन खनिजों का उपयोग बार-बार किया जा सकता है, उन्हें इस वर्ग में रखा गया है। ये हैं रत्न (मणि), खनिज जैसे लोहा, टिन, ताँबा, सोना और चाँदी।
- अनवीनीकरण लेकिन एक बार उपयोग योग्य संसाधन : कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस और अधात्विक खनिज एक बार उपयोग के बाद ही समाप्त हो जाते हैं।
समस्त धात्विक व अधात्विक खनिज इसी श्रेणी में आते हैं। ये संसाधन प्रकृति की गोद में करोड़ो वर्षों तक छिपने के बाद अपना स्वरूप बदलकर प्राप्त होते हैं। जैसे जली हुई लकड़ी बाद में कोयले का रूप प्राप्त कर लेती है। यह संसाधन समस्त मानव जाति के लिए अति महत्वपूर्ण है और इनकी महत्ता के साथ इनका उपयोग भी अत्यंत आवश्यक है।