मानव-संस्कृति एक है। विश्व के सभी लोग हिंदू-मुसलिम का भेद छोड़कर सभी संस्कृतियों की श्रेष्ठ चीजों को खुले मन से अपनाते हैं। ‘त्याग’ संस्कृति का महान गुण है। इसे कौन नहीं अपनाता? सभी अपनाते हैं। चाहे वे हिंदू हों, मुसलमान हों या ईसाई। इसी भाँति ‘बुद्ध’ के ‘अप्प दीपो भव’ (अपने दीपक स्वयं बनो) पर सभी का अधिकार है। जब जापान पर अमरीका ने परमाणु बम गिराया तो सभी संस्कृतियों ने इसका विरोध किया। सांप्रदायिक हिंसा के भी सभी विरोधी हैं। ‘रसखान’ ने कृष्ण का गुणगान किया तो बिस्मिल्ला खाँ ने बालाजी का आशीर्वाद लिया। इसी भाँति करोड़ों हिंदू अजमेर शरीफ जाकर खुदा से दुआएँ करते हैं और पीरों की पूजा करते हैं। वास्तव में सामान्य लोग तो सब संस्कृतियों को बराबर सम्मान देते हैं, परंतु कूटबुद्धि राजनेता और प्रतिबद्ध विचारक उन्हें भिड़ाकर ही दम लेते हैं।