फ़ादर कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे। उन्होंने भारत में रहकर स्वयं को पूरी तरह भारतीय बना लिया। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको अपने देश की याद आती है तो उन्होंने छूटते ही उत्तर दिया-मेरा देश तो अब भारत है। फ़ादर भारतीय मिट्टी में रच-बस गए। उन्होंने यहाँ रहकर राम-कथा के उद्भव और विकास पर शोध-कार्य किया। उन्होंने हिंदी सीखी ही नहीं, बल्कि अंग्रेजी-हिंदी का सबसे अधिक प्रामाणिक कोश तैयार किया। वे यहाँ के लोगों के उत्सवों और संस्कारों पर अभिन्न सदस्य के रूप में उपस्थित रहते थे। वे सचमुच भारतीय संस्कारों में खो चुके थे।