लेखक ने संस्कृत मानव की परिभाषा ऐसी दी है कि उसमें न्यूटन जैसे आविष्कारक और चिंतक ही आ पाते हैं। उनके अनुसार, जो व्यक्ति अपनी बुद्धि और विवेक से किसी नए तथ्य का अनुसंधान और दर्शन कर सकता है, वही संस्कृत व्यक्ति है। न्यूटन ने भी यही किया। उसने अपनी योग्यता, प्रेरणा और प्रवृत्ति से विज्ञान के विभिन्न नियमों को जाना और उसे जनता के सामने रखा। इस कारण वह संस्कृत व्यक्ति हुआ। अन्य लोग, जो न्यूटन द्वारा खोजे गए सभी सिद्धांतों की जानकारी रखते हैं और अन्य सूक्ष्म सिद्धांत भी जानते हैं, न्यूटन जैसे संस्कृत नहीं हो सकते। कारण? उन्होंने अपनी योग्यता और प्रवृत्ति से ज्ञान का आविष्कार नहीं किया। उन्होंने तो न्यूटन या अन्य वैज्ञानिकों द्वारा खोजे गए सिद्धांतों को जाना-भर।