मानव-संस्कृति एक है। हिंदू-संस्कृति’ के पक्षधर अपनी संस्कृति को महान बताएँ, यह स्वाभाविक है। हर मनुष्य को अधिकार है कि वह अपनी श्रेष्ठता और उपलब्धियों को याद रखे। इसी से उन्हें और अधिक बढ़ने का अवसर मिलता है। इसी भाँति ‘मुसलिम-संस्कृति’ भी अपनी पहचान को स्थापित करना चाहती है। यह स्वाभाविक है। परंतु सबसे घृणित लोग वे हैं जो किसी एक संस्कृति के पक्ष में होकर उसे अनचाहे लाभ दिलाते हैं। वे मुसलमान के नाम पर आरक्षण दिलाते हैं, नौकरियाँ पक्की कराते हैं, धार्मिक यात्राओं के लिए पैसे देते हैं, सरकारी खजाने से भोज देते हैं। बदले में उनके वोट पक्के करके सरकार पर कब्जा जमाना चाहते हैं। ऐसे लोग धूर्त सांप्रदायिक हैं। वे सांप्रदायिकता को हथियार बनाकर अपने विरोधियों को धूल चटाते हैं। ऐसे लोग ही दो संस्कृतियों को आपस में मिलने नहीं देते। वे उन्हें भिड़ाए रखते हैं।