माटी वाली को घर-घर माटी पहुँचाने से इतनी आय नहीं हो पाती थी कि वह कुछ साग या सब्जी खरीद सके। उसे घर की मालकिनों से जो एक-दो रोटियाँ मिल जाती थीं उन्हें ही बचाकर अपने बीमार पति (बूढ़े) के लिए ले जाती थी। वह इन रोटियों को साग या सब्ज़ी के बिना ही खा लिया करता था।
माटी वाली इस बात से दुखी है पर विवश है कि वह कुछ कर भी नहीं सकती है। उस दिन जब वह तीन रोटियाँ बचाकर ले जा रही थी तो सोच रही थी कि आज वह कुछ प्याज (एक-पाव) खरीद कर ले जाएगी और अपने बूढ़े को रोटियों के साथ प्याज कूटकर देगी। रोज सूखी रोटियाँ खाने वाला उसका बीमार पति आज तो प्याज के साथ रोटियाँ खा लेगा।