माटी वाली समाज के अत्यंत गरीब मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है। वह सुबह जल्दी उठकर माटाखान जाती तथा मिट्टी खोदकर कंटर में भरती और मिट्टी सहित कंटर सिर पर रख शहर में घर-घर घूमती थी। इसके बदले में लोग उसे एक-दो सूखी रोटियाँ कभी-कभी ताजा-बासी साग या चाय दे देते। उसे अपनी बीमार पति की चिंता भी रहती थी।
उसकी देखभाल भी वही करती थी। अपनी इसी दिनचर्या को अपनी नियति मानकर वह जिए जा रही थी। ऐसे में उसके पास अपने अच्छे या बुरे भाग्य के बारे में सोचने का ज्यादा समय न था।