एक खरगोश खुद को बहुत तेज और कछुए को बहुत धीमा समझता था। इसी घमंड में उसने उसे दौड़ की चुनौती दे दी। कछुआ हँसते-हँसते मान गया और दौड़ में शामिल हो गया। खरगोश ने एक छपाका मारा और आधा रास्ता पार कर लिया। अब शरारतवश सोचने लगा–बाकी रास्ता तो मैं सुस्ता कर भी पार कर लूंगा। यह सोचकर वह सचमुच सुस्ताने लगा। परंतु उसे नींद आ गई। इधर कछुआ धीमे-धीमे चलता रहा और लक्ष्य तक पहुँच गया। खरगोश जागा तो बहुत देर हो चुकी थी। तब उसे अहसास हुआ कि किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिए।