प्रथम विश्व युद्ध (1914) के शुरू होने के साथ ही महिलाओं के पारंपरिक महिला परिधानों की समाप्ति हो गयी।
इन परिवर्तनों के प्रमुख कारण इस प्रकार हैं
- उन्नीसवीं शताब्दी तक बच्चो के नए स्कूल सादे वस्त्रों पर बल देने और साज-श्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्र पहनने पड़ते थे जो इनकी गतिविधि में बाधा न डालें। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।
-
अनेक यूरोपीय महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का परित्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएँ अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
-
प्रथम विश्व युद्ध की अवधि में अनेक व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्रे छोटे हो गए। 1917 ई0 तक ब्रिटेन में 7,00,000 महिलाएँ गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगीं। कामगर महिलाएँ ब्लाउज, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जो बाद में खाकी ओवरआल और टोपी में परिवर्तित हो गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलने-फिरने में अधिक आसानी हो गई।
-
भड़कीले रंगों का स्थान सादे रंगों ने ले लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।