मूल प्रवृत्तियों तथा प्रतिक्षेप क्रियाओं में अन्तर
मूल प्रवृत्तियों तथा प्रतिक्षेप क्रियाओं में कुछ समानताएँ होती हैं; जैसे कि दोनों ही जन्मजात तथा स्वाभाविक होती हैं तथा दोनों को ही सीखने की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु इन दोनों प्रकार की क्रियाओं में पर्याप्त अन्तर भी हैं। इन दोनों के अन्तर का विवरण निम्नलिखित है
- मूल प्रवृत्ति द्वारा प्रेरित व्यवहार का सम्बन्ध सम्पूर्ण शरीर से होता है, जबकि प्रतिक्षेप क्रिया द्वारा प्रेरित व्यवहार या क्रिया का सम्बन्ध शरीर के किसी एक अंग से ही होता है।
- मूल प्रवृत्ति जन्य व्यवहार व्यापक होता है, जबकि प्रतिक्षेप क्रिया के परिणामस्वरूप होने वाला व्यवहार सीमित होता है।
- मूल प्रवृत्ति जन्य व्यवहार में यदि व्यक्ति चाहे तो कुछ सीमा तक परिवर्तन कर सकता है, परन्तु प्रतिक्षेप क्रियाओं में व्यक्ति कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकता।
- मूल प्रवृत्ति-जन्य व्यवहार के तीन पक्ष अर्थात् ज्ञानात्मक, संवेगात्मक तथा क्रियात्मक पक्ष होते हैं, परन्तु प्रतिक्षेप क्रिया का केवल क्रियात्मक पक्ष ही प्रस्तुत होता है।
- मूल प्रवृत्ति-जन्य व्यवहार पर प्रेरणा, रुचि तथा संवेग आदि कारकों को प्रभाव पड़ सकता है, परन्तु प्रतिक्षेप क्रियाओं पर इन कारकों का सामान्य रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ता।