ऋतुस्राव
निषेचन नहीं होने की स्थिति में अंडाशय की अंत:भित्ति की मांसल एवं स्पोंजी परत जैसी संरचना की आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि यह अंड के निषेचन होने की अवस्था में उसके पोषण के लिए आवश्यक होता है। अतः यह परत धीरे-धीरे टूटकर योनि मार्ग से रुधिर एवं म्यूकस के रूप में निष्कासित होती है। इस चक्र में लगभग एक मास
का समय लगता है, इसे ऋतुस्राव या रजोधर्म कहते हैं।