श्वसन (Respiration)
वह प्रक्रम जिसमें O2, व Co2, का विनिमय होता है, रक्त द्वारा इन गैसों का परिवहन होता है तथा ऊर्जायुक्त पदार्थों का ऑक्सीकरण में कोशिकाओं द्वारा O2 का उपयोग एवं CO2 का निर्माण किया जाता है।
ऊपरी श्वसन तंत्र (Upper respiratory system)-ऊपरी श्वसन तंत्र में मुख्य रूप से नासिका (Nose), मुख (Mouth), ग्रसनी (Pharynx), स्वरयंत्र (Larynx) आदि सम्मिलित हैं।
(1) नासिका (Nose)- नासिका में एक जोड़ी नासाद्वार उपस्थित होते हैं। ये छिद्र नासा गुहाओं में खुलते हैं। नासाद्वार एवं आन्तरिक नासा छिद्रों के बीच लम्बी नासा गुहिकाएँ विकसित हो जाती हैं। प्रत्येक नासागुहा का अग्रभाग नासा कोष्ठ तथा पश्च लम्बा भाग नासामार्ग (Nasal passage) कहलाता है। दोनों नासागुहाओं के बीच एक उदग्र पट पाया जाता है, जिसे नासा पट (Nasal septum) कहते हैं। ये गुहाएँ तालु द्वारा मुखगुहा से अलग रहती हैं। यह गुहाएँ श्लेष्मल झिल्ली द्वारा आस्तरित होती हैं जो कि पक्ष्माभिकायमय उपकला एवं श्लेष्मा कोशिका युक्त होती हैं। नासा गुहाओं के अग्र भागों की श्लेष्मल झिल्ली में तंत्रिका तंतुओं के अनेक स्वतंत्र सिरे उपस्थित होते हैं जो गंध के बारे में ज्ञान प्राप्त करवाते हैं।
(2) मुख (Mouth)- मुख श्वासतंत्र में द्वितीयक अंग (Secondary organ) के तौर पर कार्य करता है। श्वास लेने में मुख्य भूमिका नासिका की होती है परन्तु आवश्यकता होने पर मुख भी श्वास लेने के काम आता है। मुख से ली गई श्वास वायु नासिका से ली गई श्वास की भाँति शुद्ध नहीं होती।
(3) ग्रसनी (Pharynx)- नासा गुहिका (Nasal Cavity) आन्तरिक नासाद्वार ग्रसनी में खुलती है। ग्रसनी के अधर क्षेत्र में उपस्थित ग्लोटिस के माध्यम से फेरिंक्स लेरिकंस (Larynx) में खुलती है। भोजन को निगलते समय ग्लोटिस (Glottis) एपिग्लॉटिस (Epiglottis) द्वारा ढक दिया जाता है।
(4) कंठ (Larynx)- इसे स्वरयंत्र भी कहते हैं। यह नौ उपास्थियों द्वारा निर्मित होता है। इसमें स्वर रज्जु (Vocal Cords) भी उपस्थित होते हैं जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं। कंठ (Larynx) की गुहा को कण्ठकोष (Laryngeal Chamber) कहते हैं। कंठ के छिद्र को घांटी (Glottis) कहते हैं। घांटी को ढकने वाली रचना को एपीग्लोटिस (Epiglottis) कहते हैं।