फाइलेरिएसिस
यह रोग क्यूलेक्स (Culex) मच्छर द्वारा फैलता है। यह ऐसे क्षेत्रों में अधिक होता है जहाँ मच्छर अधिक होते हैं व दूषित जल का प्रयोग किया जाता है। यह रोग एक निमेटोड वाउचेरेरिया बैंक्राफ्टी (Wuchereria buncrqfti) नामक परजीवी से होता है जो लसीका बाहिनियों (lymph ducts) में रहता है। इस परजीवी की जीवित व मृत दोनों अवस्थाओं से रोग होता है। जीवित अवस्था में यह ऐलीफेन्टियासिस (elephantiasis) या फाइलेरिएसिस (filariasis) नामक रोग उत्पन्न करता है, इसे हाथी पाँव भी कहते हैं।
इस रोग में लिम्फ वाहिनियों की एन्डोथीलियम कोशिकाएँ विभाजित होकर दीवारों को मोटा कर देती हैं। शुरुआत में रोगी को हल्का बुखार व शरीर में दर्द बना रहता है। लसीका नोड के ऊतक व अन्य अंगों; जैसे- यकृत, प्लीहा, अण्डकोष, टॉगों आदि में सूजन आने से इनको आकार बढ़ जाता है। इन अंगों में सूजन आने व लसीका बहने से ट्यूमर बन जाते हैं। इस रोग की गम्भीर अवस्था में टाँग का आकार सूजकर बढ़ जाता है तथा इस अवस्था को हाथी पाँव (elephantiasis) कहते हैं। इस रोग का संचरण क्यूलेक्स मच्छर द्वारा तीसरे चरण के लार्वा माइक्रोफाइलेरिया (Microfilaria) की अवस्था में होता है। क्यूलेक्स मच्छर द्वारा किसी मनुष्य को काटने पर लार के द्वारा माइक्रोफाइलेरिया लार्वा शरीर में प्रवेश कर जाता है। तत्पश्चात् यह रक्त व लसीका वाहिनियों में पहुंचकर वयस्क में रोग का संक्रमण कर देता है।
मादा क्यूलेक्स संक्रमित व्यक्ति के रुधिर से माइक्रोफाइलेरिया लार्वा को मुख्यतः रात के समय प्राप्त करती है; क्योंकि रात में यह लार्वा संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के रुधिर वाहिनियों में आ जाते हैं।
रोकथाम (Control) – इस रोग से बचाव के लिए मच्छर व उनके लार्वा को नष्ट कर देना चाहिए तथा मच्छर के काटने से बचना चाहिए। वयस्क कृमियों को मारने के लिए आर्सेनिक से निर्मित दवा व M.S.Z. का प्रयोग किया जाना चाहिए। माइक्रोफाइलेरिया लार्वा को मारने के लिए डाइमिथाइल कार्बोमोनोजॉइन (dimethyl carbomonozoine) नामक दवी प्रभावी होती है। संक्रामक लार्वा के लिए पैरामेलेमिनाइल-फिनाइलस्टीबोनेट (paramelamynil-phenylstibonate) का प्रयोग किया जाता है। फाइलेरिया को पूर्ण रूप से समाप्त करने व फाइलेरिएसिस रोग की सूचना प्राप्त करने हेतु सरकार ने राष्ट्रीय फाइलेरिया नियन्त्रण कार्यक्रम (National Filaria Control Programme) चलाया है।