संक्रामक रोग
वे रोग जो एक व्यक्ति से दूसरे में आसानी से संचारित हो सकते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं।
1. न्यूमोनिया
कारक – यह रोग मुख्यत: शिशुओं व वृद्धजनों में होता है परन्तु अन्य उम्र के लोगों में भी हो सकता है। फेफड़ों में होने वाला यह संक्रामक रोग स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिआई व हीमोफिलस इन्फ्लुएंजी नामक जीवाणुओं से होता है। इनके अतिरिक्त स्टेफाइलोकोकस पाइरोजीन्स, क्लीष्सीला न्यूमोनिआई तथा चेचक व खसरा उत्पन्न करने वाले विषाणु व माइकोप्लाज्मा भी इस रोग के कारक हो सकते हैं। न्यूमोनिया दो प्रकार का होता है –
- विशिष्ट न्यूमोनिया – यह स्ट्रेप्टोकोकस न्यूमोनिआई नामक जीवाणु से होता है। यह रोग सामान्य श्वसन तंत्र वाले व्यक्तियों में होता है।
- द्वितीयक न्यूमोनिया – यह इन्फ्लुएंजा पीड़ित व्यक्ति में स्टेफाइलो कोकाई जीवाणु द्वारा होता है। यह रोग उन व्यक्तियों में होता है जिनके फेफड़े इस रोग से पूर्व प्रभावित होते हैं।
लक्षण
- रोगी को श्वास लेने में बाधा उत्पन्न होती है।
- रोगी को तीव्र सर्दी लगती है।
- रोगी को तीव्र ज्वर भी होता है।
- रोगी की भूख मर जाती है।
रोकथाम के उपाय
- संक्रमित व्यक्ति से दूर रहना चाहिए।
- रोगी के द्वारा प्रयोग किये गये गर्म वस्त्र, बर्तन, बिस्तर आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- घर तथा पड़ोस में स्वच्छता बनाये रखनी चाहिए।
2. जुकाम या सामान्य ठण्ड
कारक – यह अति संक्रामक रोग पिकोवायरस समूह के रहिनो विषाणु द्वारा होता है। यह विषाणु जल की कणिकाओं तथा नाक के स्राव से एक-दूसरे में फैलता है।
लक्षण – आँखों तथा नाक से पानी आना, खांसी तथा बुखार आना, हाथ-पैर व कमर में दर्द रहना, बेचैनी रहना वे शरीर का कमजोर हो जाना।
रोकथाम के उपाय – इस रोग से बचाव हेतु, संक्रमित व्यक्ति से दूर रहना चाहिए। रोगी को खाँसते या छींकते समय रूमाल से मुंह ढक लेना चाहिए। इस रोग से संक्रमित व्यक्ति की वस्तुओं के उपयोग से बचना चाहिए।
3. टाइफॉइड ज्वर
यह संक्रामक रोग ग्राम नेगेटिव, रॉड की आकृति वाले गतिशील जीवाणु (gram negative, rode shaped motile bacteria) द्वारा होता है। इसे सालमोनेला टायफी (Salmonella typhi) भी कहते हैं। यह जीवाणु छोटी आँत में रहता है व रक्त परिसंचरण द्वारा शरीर के अन्य भागों में फैल जाता है। यह रोग अधिकतर गर्मी में होता है तथा इसका जीवाणु संक्रमित भोजन, जल, मल-मूत्र आदि द्वारा लोगों में पहुँचता है। मक्खियाँ इस रोग को फैलाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं। प्राकृतिक आपदाओं; जैसे- बाढ़ आदि के समय भी यह रोग अधिक फैलता है। यह रोग पूरे विश्व में पाया जाता है, प्रायः यह 1-15 वर्ष के बालकों में अधिक होता है।
लक्षण (Symptoms)
- रोगी को लम्बे समय तक तेज बुखार रहता है।
- पूरे शरीर में दर्द रहता है।
- भूख नहीं लगती है तथा आँतों में परेशानियाँ होने लगती हैं।
- इसके साथ-साथ रोगी की नाड़ी धीमी हो जाती है तथा शरीर पर चमकीले छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं।
- कभी – कभी रोगी की आँतों से रक्त स्रावित होने लगता है। सही समय पर उपचार न होने पर रोगग्रस्त व्यक्तियों में से 10% की मृत्यु हो जाती है।
बचाव के उपाय (Measures of Prevention)
- खाद्य पदार्थों को हमेशा ढककर रखना चाहिए, जिससे मक्खियाँ जीवाणुओं को खाने तक न ला सकें।
- रोगी को हवादार तथा रोशनीयुक्त कमरे में रखना चाहिए।
- रोगी के मलमूत्र, थूक आदि को जलाकर नष्ट कर देना चाहिए।
- जल व अन्य पदार्थों को उबालकर प्रयोग में लेना चाहिए।
- बाजार के खुले खाद्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
- वातावरण को स्वच्छ रखना चाहिए तथा कीटनाशकों का नियमित छिड़काव करना चाहिए।
- TAB के टीके (TAB vaccine) लगवाने चाहिए।
रोग का उपचार (Treatment of Disease)
- इस रोग की जाँच विडाल टेस्ट (widal test) द्वारा की जाती है।
- इस रोग में क्लोरोमाइसिटीन, एपिसीलीन (ampicilline) व क्लोरेम्फेनिकोल (chloramphenicol) नामक दवाइयाँ लाभदायक होती हैं।
- अब रोगी के शरीर से पित्ताशय को निकालकर भी रोग का उपचार किया जाता है।