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Priya Sharma in Psychology
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बाल विकास के क्षेत्र : शारीरिक विकास (Physical development), मानसिक विकास (Mental development), संवेगात्मक विकास (Emotinal development), सामाजिक विकास (Social development), चारित्रिक विकास (Character development), भाषा विकास (Language development),  सृजनात्मकता का विकास (Development of creativity) इन क्षेत्रों का वर्णन।

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Anupam
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बाल विकास का क्षेत्र वर्तमान समय में व्यापक तथ्यों को समाहित किये हुए है। बाल विकास के अन्तर्गत किसी एक तथ्य पर विचार नहीं किया जाता वरन् बालक के सम्पूर्ण विकास पर विचार किया जाता है। बाल विकास का क्षेत्र बालक के शारीरिक,सामाजिक एवं मानसिक विकास के क्षेत्र से सम्बन्धित है।

बाल विकास के क्षेत्र को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-

1. शारीरिक विकास (Physical development)

बाल विकास का सम्बन्ध बालक के शारीरिक विकास से होता है। इसके अन्तर्गत बालक के भ्रूणावस्था से लेकर बाल्यावस्था वक्र के विकास का अध्ययन किया जाता है। यदि बालक का शारीरिक विकास उचित क्रम में नहीं हो रहा है तो उसके कारणों को ढूँढ़ा जाता है तथा उनका निराकरण किया जाता है। अतः बाल विकास का प्रमुख क्षेत्र बालकों के शारीरिक विकास का अध्ययन करना है।

2. मानसिक विकास (Mental development)

बालकों के मानसिक विकास का अध्ययन करना भी बाल विकास के क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। इसके अन्तर्गत बालकों की क्रियाओं एवं संवेगों के आधार पर बालकों के मानसिक विकास का अध्ययन किया जाता है। प्रायः बालक में अनेक प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं; जो कि उसके मानसिक विकास को प्रकट करते हैं; जैसे-वस्तुओं को पकड़ना, विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ करना तथा नवीन शब्द बोलना आदि।

3. संवेगात्मक विकास (Emotinal development)

बालकों के विभिन्न संवेगों सम्बन्धी गतिविधियों का अध्ययन भी बाल विकास की परिधि में आता है। बाल विकास के अन्तर्गत बालकों के विभिन्न संवेगों का अध्ययन किया जाता है। यदि बालक अपनी आयु के अनुसार संवेगों को प्रकट नहीं कर रहा है तो उसका संवेगात्मक विकास उचित रूप में नहीं हो। यदि वह आयु वर्ग के अनुसार संवेगों को प्रकट कर रहा है तो उसका संवेगात्मक विकास सन्तुलित है। अत: इसमें बालकों के विभिन्न संवेग, उत्तेजना, पीड़ा, आनन्द, क्रोध, परेशानी, भय, प्रेम एवं प्रसन्नता आदि का भी अध्ययन किया जाता है।

4. सामाजिक विकास (Social development)

बालकों का सामाजिक विकास भी बाल विकास के क्षेत्र में आता है। बाल विकास के अन्तर्गत बालों के सामाजिक व्यवहार का अध्ययन प्रमुख रूप से किया जाता है। सामाजिक व्यवहार के अन्तर्गत परिवार के सदस्यों को पहचानना, उनके प्रति क्रोध एवं प्रेम की प्रतिक्रिया व्यक्त करना, परिचितों से प्रेम तथा अन्य से भयभीत होना एवं बड़े अन्य व्यक्तियों के कार्यों में सहायता देना आदि को सम्मिलित किया गया है। बालक के आयु वर्ग के अनुसार किया गया उचित व्यवहार सन्तुलित विकास को प्रदर्शित करता है तथा इसके विपरीत की स्थिति बालक के सन्तुलित विकास की सचक नहीं होती है।

5. चारित्रिक विकास (Character development)

बालकों का चारित्रिक विकास भी बाल विकास के क्षेत्र में आता है। इसके अन्तर्गत बालकों के शारीरिक अंगों के प्रयोग, सामान्य नियमों के ज्ञान, अहंभाव की प्रबलता, आज्ञा पालन की प्रबलता, नैतिकता का उदय एवं कार्यफल के प्रति चेतनता की भावना आदि को सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार बालकों का आयु वर्ग के अनुसार चरित्रगत गुणों का विकास होना बालकों के सन्तुलित चारित्रिक विकास का द्योतक माना जाता है। इसके विपरीत स्थिति को उचित नहीं माना जा सकता।

6. भाषा विकास (Language development)

बालका के भाषायी विकास का अध्ययन भी बाल विकास के अन्तर्गत आता है। बालक अपनी आयु के अनुसार विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ एवं शब्दों का उच्चारण करता है। इन शब्दों एवं ध्वनियों का उच्चारण उचित आयु वर्ग के अनुसार बालक के सन्तुलित भाषायी विकास की ओर संकेत करता है। जैसे-1 वर्ष से 1 वर्ष 9 माह तक के बालक की शब्दोच्चारण प्रगति लगभग 118 शब्द के लगभग होनी चाहिये। यदि शब्दोच्चारण की प्रगति इससे कम है तो बालक का भाषायी विकास उचित रूप में नहीं हो रहा है। इस प्रकार की भाषा सम्बन्धी क्रियाएँ इस क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं।

7. सृजनात्मकता का विकास (Development of creativity)

बालकों की सृजनात्मकता का विकास भी बाल विकास की परिधि में आता है। इसमें बाल कल्पना के विविध स्वरूपों के आधार पर उसके सृजनात्मक विकास के स्वरूप को निश्चित किया जाता है। बालक द्वारा विभिन्न प्रकार के खेल खेलना, कहानी सुनाना तथा खिलौनों का निर्माण करना आदि क्रियाएँ उसकी सृजनात्मक योग्यता को प्रदर्शित करती हैं।

8. सौन्दर्य सम्बन्धी विकास (Asthetic related development)

प्राय: बालकों को अनेक प्रकार की कविताओं में सौन्दर्य की अनुभूति होने लगती है। वह कविताओं के भाव को ग्रहण करने की चेष्टा करता है: जैसे-'वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो', नामक कविता छात्रों में वीरता की भावना का संचार करती है। बालक इस प्रकार की भावनाओं को कविता, विचार एवं कहानियों के माध्यम से ग्रहण करता है। इस प्रकार सौन्दर्य सम्बन्धी विकास का अध्ययन भी बाल विकास के अन्तर्गत आता है।

उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि बाल विकास के अन्तर्गत बालकों के सर्वांगीण विकास की सामग्री आती है, जो कि उनके व्यक्तित्व के विविध पक्षों से सम्बन्धित होती है। वर्तमान समय में बाल विकास मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण पक्ष है। इसलिये इसका क्षेत्र भी पूर्णत: व्यापक है।

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