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वैद्युत संयोजी (आयनिक) यौगिकों के मुख्य लक्षण बताइये

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वैद्युत संयोजी (आयनिक) यौगिकों के मुख्य लक्षण 

  1. इन यौगिकों के क्रिस्टल धनावेशित और ऋणावेशित आयनों से बने होते हैं अर्थात् ये यौगिक अणुओं से न बनकर आयनों से बने होते हैं; अत: इन्हें आयनिक यौगिक भी कहा जाता है।

  2. वैद्युत संयोजी यौगिक क्योकि धन तथा ऋण आयनों से बने होते हैं; अत: इनके अणुओं के मध्य विपरीत आवेशित आयनों के बीच वैद्युत आकर्षण बल उत्पन्न हो जाता है, फलस्वरूप स्थिर क्रिस्टल जालक होता है जिसको तोड़ने में अधिक ऊर्जा लगती है, क्योंकि व्यय ऊर्जा तापक्रम के समानुपाती होती है; इसलिए इन यौगिकों के अवस्था परिवर्तन के ताप अर्थात् क्वथनांक और गलनांक अधिक ऊँचे होते हैं।

  3. वैद्युत संयोजी यौगिक जल तथा अन्य ध्रुवीय विलायकों में तथा कार्बनिक विलायकों में अविलेय होते हैं। जल तथा अन्य ध्रुवीय विलायकों में घोलने पर इन यौगिकों के आयनन के फलस्वरूप वैद्युत आकर्षण बल कमजोर हो जाता है, क्योंकि ध्रुवीय विलायकों का परावैद्युत स्थिरांक उच्च होता है \left( \because \quad F\propto \frac { 1 }{ D } \right)इसलिए वे आयनित हो जाते हैं, फलस्वरूप वे विलेय हो जाते हैं, जबकि • कार्बनिक विलायकों में इनका आयनन नहीं होता, क्योंकि उनका परावैद्युत स्थिरांक कम होता है; अतः इनमें वे अविलेय रहते हैं।

  4. आयनिक यौगिक गलित अवस्था तथा जलीय विलयन में आयनों में विभक्त रहते हैं, इसीलिए इस | अवस्था में ये विद्युत के सुचालक होते हैं, जबकि ठोस अवस्था में विद्युत के कुचालक होते हैं।

  5. ये यौगिक जलीय विलयन में आयनों के रूप में रहते हैं, इसीलिए इनकी अभिक्रियाएँ तात्कालिक होती हैं।

  6. इन यौगिकों के बन्ध अदिशात्मक होते हैं जिसके कारण ये समावयवता व्यक्त नहीं करते हैं।

  7. वैद्युत संयोजक यौगिकों की रासायनिक अभिक्रियाओं में इनके आयन भाग लेते हैं तथा इनसे सम्बन्धित अभिक्रियाओं को आयनिक अभिक्रियाएँ कहते हैं।

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