रासायनिक अपक्षय
जब वियोजन की क्रिया द्वारा चट्टानें ढीली पड़कर विदीर्ण हो जाती हैं तो इस क्रिया को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। रासायनिक अपक्षय आर्द्र जलवायु में अधिक प्रबल होता है क्योंकि इसके लिए जल का होना बहुत आवश्यक है। ऑक्सीजनं, कार्बन डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन आदि गैसें रासायनिक अपक्षय का महत्त्वपूर्ण साधन हैं जो रासायनिक अभिक्रियाओं द्वारा शैलों के संगठन एवं संरचना में परिवर्तन उत्पन्न करती हैं। इससे शैलें टूट जाती हैं। रासायनिक अपक्षय निम्नलिखित रूपों में सम्पन्न होता है।
(क) ऑक्सीकरण-शैलों में उपस्थित लोहांश जब ऑक्सीजन गैस के सम्पर्क में आता है तब रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप लोहे के कण ऑक्साइडों में परिवर्तित हो जाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप चट्टानों का आयतन बढ़ जाता है। आयतन बढ़ने से शैलों का संगठन ढीला पड़ जाता है। तथा उनका अपक्षय होने लगता है। इन प्रक्रिया से चट्टानें शीघ्रता से टूट जाती हैं।
(ख) कार्बनीकरण-कार्बन डाइऑक्साइड गैस जल के साथ क्रिया कर हल्का अम्ल बनाती है। यह अम्ल शैलों में पाए जाने वाले चूने के अंश को घोल लेता है, जिससे कैल्सियम कार्बोनेट का निर्माण होता है। इस प्रकार शैलों का संगठन निर्बल पड़ जाता है और वे घुलकर टूट जाती हैं।
(ग) जलयोजन-जल में हाइड्रोजन गैस उपस्थित रहती है। जैसे ही यह गैस शैलों के सम्पर्क में आती है उनके आयतन में वृद्धि कर देती है, फलतः उन पर तनाव पैदा होता है, जिसके कारण उनमें उपस्थित खनिज लवण चूर्ण-चूर्ण हो जाते हैं तथा शैलों के स्तर उखड़ने लगते हैं। इस प्रकार जलयोजन से अपक्षय की क्रिया सक्रिय रहती है।