अपक्षय और अपरदन में अन्तर
अपक्षय और अपरदन में अन्तर स्पष्ट करने से पूर्व अपक्षय तथा अपरदन की क्रियाओं को समझना आवश्यक है। अपक्षय का अर्थ है–शैलों का अपने ही स्थान पर क्षीण होना या ढीला पड़ना। इस क्रिया को ऋतु-अपक्षय भी कहते हैं, क्योंकि इसमें मौसम के तत्त्व; जैसे-तापमान, आर्द्रता (वर्षा), पाला आदि चट्टानों को प्रभावित करके उनके कणों को ढीला कर देते हैं जिससे वे विखण्डित हो जाती हैं। चट्टानों के अपक्षय की यह क्रिया दो रूपों में होती है—(1) भौतिक अथवा यान्त्रिक रूप से तथा (2) रासायनिक रूप से। भौतिक अपक्षय द्वारा चट्टानें विघटित होती हैं। रासायनिक अपक्षय में शैलों में टूट-फूट नहीं होती वरन् उनके रासायनिक संगठन में परिवर्तन हो जाता है। उदाहरणत: जल के प्रभाव से शैलों के कण घुल जाते हैं जिससे वे ढीली पड़ जाती हैं। इसे शैलों का अपघटन कहते हैं। शैलों के अपक्षय की क्रिया तीन प्रकार की होती है—(1) भौतिक यो यान्त्रिक, (2) रासायनिक तथा (3) जैविक।। यहाँ यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि भौतिक एवं रासायनिक कारकों के अतिरिक्त प्राणी (वनस्पति एवं जीव-जन्तु) भी शैलों को ढीला करने में सहयोग देते हैं। उदाहरणत: पेड़-पौधों की जड़े शैलों को ढीला करती हैं। अनेक प्रकार के बिलकारी जीव-जन्तु, कीड़े आदि भी शैलों को ढीला बनाने का कार्य करते हैं।
अपरदन का अर्थ है-चट्टानों को घिसना। इस कार्य में अपरदन के अनेक गतिशील साधन जो पदार्थ को बहाकर या उड़ाकर ले जाने की क्षमता रखते हैं, चट्टानों के अपरदन में सहयोग देते हैं। इन साधनों में बहता हुआ जल या नदी, हिमानी, पवन, सागरीय लहरें तथा भूमिगत जल अपरदन के प्रधान कारक हैं। ये सभी साधन गतिशील होने के कारण शैलों को तोड़ने-फोड़ने, अपरदित पदार्थ को बहाकर ले जाने तथा उसे अन्यत्र जमा करने में समर्थ होते हैं। अपरदन की इस क्रिया से भूपटल का बड़े पैमाने पर अनाच्छादन होता है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि अपक्षय और अपरदन में निम्नलिखित मौलिक अन्तर होते हैं
1. अपक्षय एक स्थैतिक क्रिया है, जिसमें शैलों की अपने ही स्थान पर टूट-फूट होती है। इसके विपरीत, अपरदन एक गतिशील क्रिया है जिसमें टूटी शैलों को उनके स्थान से हटाकर अन्यत्र ले
जाकर निक्षेपित कर दिया जाता है।
2. अपक्षय में वायुमण्डल की शक्तियाँ; जैसे–तापमान, पाला, वर्षा आदि योग देते हैं। इसके विपरीत, अपरदन में धरातल के ऊपर सक्रिय (बाह्यजात) गतिशील साधन योग देते हैं।
3. अपक्षय एक पूर्ववर्ती क्रिया है जो बाद में अपरदन क्रिया को सरल बनाती है। किन्तु चट्टानों के अपक्षय के लिए अपरदन की कोई भूमिका नहीं होती। दूसरे शब्दों में, अपक्षय क्रिया अपरदन पर निर्भर नहीं है।