चक्रीय प्रक्रम
जब कोई निकाय एक अवस्था से चलकर, भिन्न-भिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ पुन: अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौट आता है, तो उसे ‘चक्रीय प्रक्रम’ कहते हैं। इस प्रक्रम में निकाय की आन्तरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात् ∆U = 0 ; अत: ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम की समीकरण ∆U = Q – W से
0 = Q – W अथवा Q = W
अतः चक्रीय प्रक्रम में किसी निकाय को दी गयी ऊष्मा निकाय द्वारा दिये गये नेट कार्य के बराबर होती है।
चक्रीय प्रक्रम में किया गया कुल कार्य जब कोई निकाय विभिन्न परिवर्तनों द्वारा विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता हुआ अपनी प्रारम्भिक अवस्था में लौट आता है, तो इस सम्पूर्ण प्रक्रम को चक्रीय प्रक्रम कहते हैं।”