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Pratham Singh in Physics
उर्जा संरक्षण का नियम भौतिकी का एक प्रयोगाधारित नियम है। इसके अनुसार. किसी अयुक्त निकाय की कुल उर्जा समय के साथ नियत रहती है।

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Deva yadav

उर्जा संरक्षण का नियम

इसके अनुसार

किसी अयुक्त निकाय  की कुल उर्जा समय के साथ नियत रहती है। अर्थात उर्जा का न तो निर्माण सम्भव है न ही विनाश; केवल इसका रूप बदला जा सकता है। उदाहरण के लिये गतिज ऊर्जा को स्थितिज में बदल सकती है; विद्युत उर्जा, उष्मा में बदल सकती है; यांत्रिक कार्य से उष्मा उत्पन्न हो सकती है।ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम भी वास्तव  में उर्जा संरक्षण के नियम का एक परिवर्तित रूप है।

परिचय

वैद्युत घटों (सेलों) द्वारा रासायनिक ऊर्जा वैद्युत ऊर्जा में परिणत होती है। इस बिजली से हम प्रकाश पैदा कर सकते हैं। सूर्य के प्रकाश से प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा प्रकाश-ऊर्जा पेड़ों की रासायनिक ऊर्जा में परिणत होती है। ऐसी क्रियाओं द्वारा यह स्पष्ट है कि विभिन्न परिवर्तनों में ऊर्जा का केवल रूप बदलता है। ऊर्जा के मान में कोई अंतर नहीं आता।

ऊर्जा-अविनाशिता-सिद्धांत की ओर पहला पद प्रसिद्ध डच वैज्ञानिक क्रिश्चियन हाइगेंज़ ने उठाया जो न्यूटनका समकालीन था। अपनी एक पुस्तक में, जो हाइगेंज़ ने कहा कि जब दो पूर्णत: प्रत्यास्थ (इलैस्टिक) पिंड़ों में संघात (टक्कर) होता है तो उनके द्रव्यमानों और उनके वेगों के गुणनफलों का योग संघात के बाद भी उतना ही रहता है जितना टक्कर के पहले।कुछ लोगों का अनुमान है कि यांत्रिक ऊर्जा की अविनाशिता के सिद्धांत का पता न्यूटन को था। परंतु स्पष्ट शब्दों से सबसे पहले लाग्राँज़ ने इसे सन् 1788 ई. में व्यक्त किया। लाग्राँज़ के अनुसार ऐसे पिंडसमुदाय में जिसपर किसी बाहरी बल का प्रभाव न पड़ रहा हो, यांत्रिक ऊर्जा, अर्थात् स्थितिज ऊर्जा एवं गतिज ऊर्जा का योग, सर्वदा एक ही रहता है।

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