काली मृदा में सूक्ष्म कणों की प्रचुरता होती है। इसलिए इस मृदा में नमी को लम्बे समय तक रोकने की क्षमता होती है। इस मृदा में कैल्सियम, पोटाशियम, मैग्नीशियम और चूना होता है। काली मृदा कपास की खेती के लिए बहुत उपयुक्त होती है। इस मृदा में कई अन्य फसल भी उगाये जा सकते हैं
- यह मिट्टी ज्वालामुखी से निकलने वाले लावा से बनती है।
- भारत में यह लगभग 5 लाख वर्ग-किमी. में फैली है| महाराष्ट्र में इस मिट्टी का सबसे अधिक विस्तार है। इसे दक्कन ट्रॅप से बनी मिट्टी भी कहते हैं।
- यह बहुत ही उपजाऊ है और कपास की उपज के लिए प्रसिद्ध है इसलिए इसे कपासवाली काली मिट्टी कहते हैं।
- इस मिट्टी में नमी को रोक रखने की प्रचुर शक्ति है, इसलिए वर्षा कम होने पर भी सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।
- इसकी मिट्टी की मुख्य फसल कपास है। इस मिट्टी में गन्ना, केला, ज्वार, तंबाकू, रेंड़ी, मूँगफली और सोयाबीन की भी अच्छी पैदावार होती है।
काली मिट्टी की प्रमुख विशेषता :
- इसकी मुख्य विशेषता नमी पाने पर फैलने लगता है और सूखने पर सिकुड़ने लगती है और यह विशेषता मान्टमाँरिलोनाइट की अधिकता के कारण होता है।
- यह कपास की खेती के लिए सबसे अच्छी मृदा है क्योंकि इसमें जल धारण करने की सर्वाधिक क्षमता होती है और कपास की खेती को अधिक समय तक के लिए पानी की आवश्यकता होती है ।
- काली मिट्टी बहुत जल्दी चिपचिपी हो जाती है तथा सूखने पर इस में दरारें पड़ जाती हैं इसी के कारण काली मिट्टी को स्वत जुताई वाली मिट्टी कहा जाता है।