ईसा-की प्रारंभिक शताब्दियों में "क्षोम" (Kshom) को क्षत्रिय वर्ग को कहा जाता था। क्षत्रिय वर्ग भारतीय जाति व्यवस्था में चार वर्णों में से एक था, और इसकी प्रमुख जिम्मेदारी राजा और सैन्य होती थी।
क्षत्रिय वर्ग का कार्यक्षेत्र युद्ध और राजनीति में था, और उन्हें समाज की रक्षा और शांति की सुनिश्चिति के लिए जिम्मेदार माना जाता था। वे राज्य की प्रबंधन के लिए भी उपयुक्त थे और राजा के साथ सलाहकार के रूप में कार्य करते थे।
क्षत्रिय वर्ग का महत्व भारतीय समाज में बहुत अधिक था और वे राजा और योद्धा के रूप में सम्मानित थे। इस वर्ग के लोग आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों में भी भाग लेते थे और धार्मिक यज्ञों और उपासना में शामिल होते थे।