काँग्रेस अधिवेशन के बारे में यह बाल गंगाधर तिलक ने कहा था कि ‘यदि हम वर्ष में एक बार मेढ़क की भाँति टर्रायें तो हमें कुछ नहीं मिलेगा। 1907 के कांग्रेस के सूरत विभाजन का कारण पार्टी में दो विचारधाराओं का जन्म लेना था जिसकी शुरुआत 1905 के बनारस अधिवेशन में ही हो गई थी जब गोपाल कृष्ण गोखले की अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ तो बाल गंगाधर तिलक ने उदारवादियों की "याचिका एवं याचना की नीति" का कड़ा विरोध किया।
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