गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर सड़क पर पानी की चमक दिखाई देती है। हम वहाँ जाकर देखते हैं तो कुछ नहीं होता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ‘मृगतृष्णा’ कहा जाता है। इस कविता में इसका अर्थ छलावे और भ्रम के लिए किया गया है। कवि कहना चाहता है कि लोग प्रभुता अर्थात् बड़प्पन में सुख मानते हैं। किंतु बड़े होकर भी कोई सुख नहीं मिलता। अतः बड़प्पन का सुख दूर से ही दिखाई देता है। यह वास्तविक सच नहीं है।