संस्कृत के नाटकों में पटाक्षेप के लिए ‘यवनिका’ शब्द प्रयोग किया जाता है यह यूनानी भाषा का शब्द हैं। संस्कृत नाटक रसप्रधान होते हैं। इनमें समय और स्थान की अन्विति नहीं पाई जाती। अपनी रचना-प्रक्रिया में नाटक मूलतः काव्य का ही एक प्रकार है। सूसन के लैंगर के अनुसार भी नाटक रंगमंच का काव्य ही नहीं, रंगमंच में काव्य भी है।