in सामान्य हिन्दी
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फेरीवाले हमारे दिन-प्रतिदिन की बहुत-सी जरूरतों को आसान  के बारे में बताओ |

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भारत में परंपरागत व्यापार का एक बहुत बड़ा हिस्सा फेरीवालों के हाथ में रहा है। ये फेरीवाले व्यापारी वर्ग के अंतर्गत आते हैं। परंतु इन्हें व्यापार में सबसे नीचा दर्जा प्राप्त है। यह बात सच है कि फेरीवाले गरीब होते हैं। इसी कारण वे एक जगह टिककर माल नहीं बेचते। घूम-घूम कर माल बेचना उनकी मजबूरी होती है, शौक नहीं।
हमारी सरकारें समय-समय पर व्यापारियों के कल्याण के लिए बहुत सुविधाएँ जुटाती हैं। परंतु फेरीवाले उपेक्षित रहते हैं। इनकी गिनती दिहाड़ी मज़दूरों में भी नहीं होती। ये बेचारे रोज-रोज अपना माल गठरियों, रेहड़ियों, साइकिलों या अन्य वाहनों पर लादे-लादे घूमते हैं। सुविधाओं के अभाव में ही इन्हें अपने कंधों पर बोझ ढोना पड़ता है। सरकार चाहे तो फेरीवालों के लिए रियायती दर पर वाहनों की व्यवस्था कर सकती है। इन्हें बैंकों से आसान दर पर पैसा उधार मिल सकता है। इनके लिए सामान रखने के सेंटर खुल सकते हैं।
ये फेरीवाले गाँव-गाँव घूमकर उन बड़े-बूढ़ों और सुदूर रहने वालों को माल पहुँचाते हैं जो बाजार में जा नहीं पाते। ये चलते-फिरते बाज़ार हैं। गाँववासी हों या शहरवासी–इनकी बहुत-सी ज़रूरतें ये फेरीवाले पूरा करते हैं। इसलिए इनकी समस्याओं पर विचार होना चाहिए।

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