ग्रामीण परिवेश में प्रकृति धूल के अनेक सुंदर चित्र प्रस्तुत करती है; जैसे-आम की बागों के पीछे छिपते सूर्य की किरणों में जो धूलि सोने को मिट्टी कर देती है, सूर्यास्त के बाद रास्ते पर गाड़ी के निकल जाने के बाद जो रुई के बादलों की तरह या ऐवरावत हाथी के नक्षत्र पथ की तरह जहाँ की तहाँ स्थिर रह जाती है। चाँदनी रात में मेले में जाने वाली गाडियों के पीछे धूल कवि की कल्पना की भाँति उमड़ती चलती है। यही धूल फूल की पंखुड़ियों पर सौंदर्य बनकर छा जाती है |