आज ज़माना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। वे उसे गली-मुहल्ले में बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। जब से निठारी जैसे कांड होने लगे हैं, तब से बच्चे भी डरे-डरे रहने लगे हैं। अब न तो हुल्लडबाजी, शरारतें और तुकबंदियाँ रही हैं; न ही नंगधडंग घूमते रहने की आजादी। अब तो बच्चे प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक्स के महँगे खिलौनों से खेलते हैं। बरसात में बच्चे बाहर रह जाएँ तो माँ-बाप की जान निकल जाती है। आज न कुएँ रहे, न रहट, न खेती का शौक। इसलिए आज का युग पहले की तुलना में आधुनिक, बनावटी और रसहीन हो गया है।