गुप्तकाल में होने वाले उद्योग
गुप्तकाल में धातु शिल्प, वस्त्र निर्माण, आभूषण कला, काष्ठ शिल्प, पाषाण शिल्प तथा हाथी दाँत का काम आदि उद्योगों में विशेष प्रगति हुई। आभूषण हाथी दाँत, धातु कर्म, बर्तन आदि से सम्बन्धित उद्योग विकसित हुए। धातु शिल्प के क्षेत्र में हुई अद्भुत प्रगति का एक भव्य उदाहरण महरौली का लौह स्तम्भ है जो इतनी शताब्दियों बाद भी बिना जंग लगे खड़ा है। गुप्तकालीन ताम्रशिल्प का एक श्रेष्ठ उदाहरण ताँबे की विशालकाय बुद्ध की मूर्ति है जो सुल्तानगंज (भागलपुर बिहार) से प्राप्त हुई थी। गुप्तकाल की सहस्रों स्वर्ण मुद्रायें प्राप्त हुई हैं जो विशुद्ध भी हैं तथा कलात्मक भी।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय सोने के अतिरिक्त चाँदी एवं ताँबे का भी मुद्राओं के निर्माण लिए प्रयोग किया गया। वस्त्र निर्माण भी गुप्तकाल का एक प्रमुख उद्योग था। भारत के व्यापार में वस्त्रों का प्रमुख स्थान था तथा विदेशी बाजारों में भी भारतीय वस्त्रों की बहुत माँग थी। गुप्तकाल में आभूषण बना का शिल्प भी उन्नत अवस्था में था। आभूषण बनाने के लिए स्वर्ण एवं रजत के अलावा विभिन्न प्रकार के रत्नों का भी बहुलता से प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त गुप्तकाल में काष्ठ शिल्प एवं हाथी दाँत का काम भी विकसित अवस्था में था। इलाहाबाद के निकट भीत नामक स्थल पर गुप्तकालीन हाथी दाँत की दो मुहरें भी प्राप्त हुई हैं।