प्रेरणायुक्त व्यवहार के लक्षण
(1) अधिक शक्ति का संचालन – प्रेरणायुक्त व्यवहार का प्रथम मुख्य लक्षण व्यक्ति में कार्य करने की अधिक शक्ति का संचालन है। आन्तरिक गत्यात्मक शक्ति प्रेरणात्मक व्यवहार का आधार है। जिसके अभाव में व्यक्ति प्रायः निष्क्रिय हो जाता है। यह माना जाता है कि व्यक्ति के व्यवहार की तीव्रता जितनी अधिक होगी उसकी पृष्ठभूमि में प्रेरणा भी उतनी ही शक्तिशाली होगी। उदाहरण के लिए परीक्षा के दिनों में विद्यार्थी बिना थके घण्टों तक पढ़ते रहते हैं, जबकि सामान्य दिनों में वे उतना परिश्रम नहीं करते तथा क्रोध की अवस्था में एक दुबला-पतला-सा व्यक्ति कई लोगों के काबू में नहीं आता। प्रेरणा की दशा में इस प्रकार के अतिरिक्त शक्ति के संचालन का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि शक्ति के इस अतिरिक्त संचालन का मुख्य कारण प्रबल प्रेरणा की दशा में उत्पन्न होने वाले शारीरिक एवं रासायनिक परिवर्तन होते हैं।
(2) परिवर्तनशीलता – प्रेरणायुक्त व्यवहार का दूसरा लक्षण उसमें निहित परिवर्तनशीलता या अस्थिरता का गुण है। वस्तुत: प्रत्येक व्यवहार अथवा क्रिया का कोई-न-कोई लक्ष्य/उद्देश्य अवश्य होता है। यदि किसी एक मार्ग, विधि, उपाय अथवा प्रयास द्वारा अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती है तो प्रेरित व्यक्ति लक्ष्य-सिद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयास करता है। प्रयासों में एकरसता और पुनरावृत्ति का सगुण नहीं पाया जाता, अपितु आवश्यकतानुसार बराबर परिवर्तन की प्रवृत्ति देखने को मिलती है। इस प्रकार लक्ष्य प्राप्ति का सही मार्ग मिलने तक प्रेरित व्यक्ति मार्ग परिवर्तित करता रहता है।
(3) निरन्तरता – प्रेरणायुक्त व्यवहार या क्रिया के लगातार जारी रहने का लक्षण निरन्तरता कहलाता है। उद्देश्यानुसार प्रारम्भ की गई ये क्रियाएँ उस समय तक अनवरत रूप से चलती रहती हैं। जब तक कि लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। कार्य पूर्ण हो जाने पर प्रेरणा की यह विशेषता स्वत: ही समाप्त या कम हो जाती है। कार्य की निरन्तरता अल्पकालीन भी हो सकती है तथा दीर्घकालीन भी। भूखा व्यक्ति भोजन पाने का तब तक ही निरन्तर प्रयास करता है जब तक कि उसे भोजन नहीं मिल जाता। भोजन प्राप्त होते ही उसके प्रयास या तो समाप्त हो जाते हैं या शिथिल पड़ जाते हैं।
(4) चयनता – प्रेरणायुक्त व्यवहार का एक प्रमुख लक्षण चयनता भी है। प्रेरित व्यक्ति अपनी आवश्यकता के अनुसार व्यवहार एवं अनुभव का चयन करता है। वह विभिन्न वस्तुओं के बीच से अधिक आवश्यक वस्तु का चयन करने त्था उसे पाने का प्रयास करता है। उदाहरण के लिए किसी प्यासे व्यक्ति के सम्मुख विभिन्न प्रकार के व्यंजन परोसे जाने पर भी अन्य व्यंजनों की तुलना में उसका प्रत्येक प्रयास जल को प्राप्त करने के लिए होगा।
(5) लक्ष्य प्राप्त करने की व्याकुलता – प्रेरणायुक्त व्यवहार में लक्ष्य प्राप्त करने की व्याकुलता पाई जाती है। यह व्याकुलता लक्ष्य पूर्ण होने तक बनी रहती है। अतः प्रेरित व्यवहार लक्ष्योन्मुख व्यवहार कहलाता है। परीक्षार्थी में परीक्षा पूर्ण होने तक व्याकुलता बनी रहती है और वह तनावग्रस्त रहता है।
(6) लक्ष्य-प्राप्ति पर व्याकुलता की समाप्ति – व्याकुलता उस समय तक बनी रहती है जब तक कि लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता। लक्ष्य-प्राप्ति के उपरान्त व्याकुलता समाप्त हो जाती है। पूर्वोक्त उदाहरण में परीक्षा समाप्त होते ही परीक्षार्थी की व्याकुलता समाप्त हो जाती है और वह तनावमुक्त होकर शान्त हो जाता है। इसी प्रकार भूख से व्याकुल व्यक्ति भोजन प्राप्त होते ही शान्ति लाभ करता है। और उसकी व्याकुलता समाप्त हो जाती है।