इस्लाम के संस्थापक पैगम्बर हज़रत मुहम्मद धर्म की स्थापना
हज़रत मुहम्मद का जन्म 570 ई. में अरब के प्रसिद्ध नगर मक्का में कुरैशी कबीले के ऊंचे घराने में हुआ। उस समय अरब के लोग मूर्ति पूजा करते थे और उनमें बहुत से रीति-रिवाज प्रचलित थे। मुहम्मद साहब इन प्रथाओं के कड़े विरोधी थे और अरबों को इनसे मुक्त करवाना चाहते थे।
40 वर्ष की आयु में उन्होंने अपने पैगम्बर होने की घोषणा की और इस्लाम धर्म की नींव रखी। उन्होंने यह प्रचार किया कि अल्लाह (ईश्वर) एक है और उसी एक अल्लाह की पूजा करनी चाहिए। कुरान एक पवित्र पुस्तक है तथा मुसलमानों के लिए इसके आदेश सर्वोच्च हैं। उन्होंने मूर्ति पूजा का खण्डन किया। कुछ लोगों ने उनकी शिक्षाओं को बहुत श्रद्धा से अपना लिया। मक्का के उन लोगों को हजरत मुहम्मद साहिब की शिक्षाओं से प्ररेणा मिली जो यह समझते थे कि व्यापार तथा धर्म से होने वाले लाभ से वंचित रहे हैं। वह अपने लिये एक अलग पहचान की खोज में थे।
जिन लोगों ने मुहम्मद साहब की शिक्षाओं का अनुसरण किया उन्हें मुसलमान कहा जाने लगा। उनको यह आश्वासन दिया गया कि कयामत के दिन उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी तथा जब तक वह जीवित हैं उनका समाज के संसाधनों पर अधिकार होगा।
लेकिन कुछ लोग उनके कड़े विरोधी बन गये तथा उनके लिए कठिनाईयां उत्पन्न कर दीं। उनका इतना विरोध हुआ कि उन्होंने 622 ई. में मक्का छोड़ कर मदीन चले गये। इस घटना को हिजरत कहते हैं और इसी समय से मुसलमानों का हिजरी संवत आरम्भ होता है। मदीना के लोगों की सहायता से उन्होंने कुरैशी कबीले को पराजित करके फिर मक्का पर अधिकार कर लिया और उन्होंने अपने जीवनकाल में ही सभी अरब निवासियों को अपने धर्म का अनुयायी बना लिया।
मक्का पर विजय प्राप्त करने के दो वर्ष पश्चात 634 ई. में वे परलोक सिधार गये और उनको मदीना में दफनाया गया। उनकी मृत्यु के सौ वर्ष पश्चात् उनके अनुयायियों ने विश्व के बहुत बड़े भाग पर विजय प्राप्त कर लिया तथा वहां के लोगों को इस्लाम धर्म का अनुयायी बना दिया, जिससे इस धर्म का और विस्तार हो गया।