हरित रसायन (Green Chemistry)
हमारे देश ने 20वीं सदी के अन्त तक उर्वरकों एवं कीटनाशकों के उपयोग तथा कृषि की उन्नत विधियों का प्रयोग करके अच्छी किस्म के बीजों, सिंचाई आदि से खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त कर ली है, परन्तु मृदा के अधिक शोषण एवं उर्वरकों तथा कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग से मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता घटी है।
इस समस्या का समाधान विकास के प्रारम्भ हो चुके प्रक्रम को रोकना नहीं अपितु उन विधियों को खोजना है, जो वातावरण के असन्तुलन को रोक सकें। रसायन विज्ञान तथा अन्य विज्ञानों के उन सिद्धान्तों का ज्ञान, जिससे पर्यावरण के दुष्प्रभावों को कम किया जा सके, ‘हरित रसायन’ कहलाता है।
हरित रसायन उत्पादन का वह प्रक्रम है, जो पर्यावरण में न्यूनतम प्रदूषण या असन्तुलन लाता है। इसके आधार पर यदि एक प्रक्रम में उत्पन्न होने वाले सहउत्पादों को यदि लाभदायक रूप से उपयोग नहीं किया गया तो वे पर्यावरण-प्रदूषण के कारक होते हैं। ऐसे प्रक्रम न सिर्फ पर्यावरणीय दृष्टि से हानिकारक हैं अपितु महँगे भी हैं। विकास-कार्यों के साथ-साथ वर्तमान ज्ञान का रासायनिक हानि को कम करने के लिए उपयोग में लाना ही हरित रसायन का आधार है।
एक रासायनिक अभिक्रिया की सीमा, ताष, दाब, उत्प्रेरक के उपयोग आदि भौतिक मापदण्ड पर निर्भर करती हैं। हरित रसायन के सिद्धान्तों के अनुसार यदि एक रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक एक पर्यावरण अनुकूल माध्यम में पूर्णतः पर्यावरण अनुकूल उत्पादों में परिवर्तित हो जाए तो पर्यावरण में कोई रासायनिक प्रदूषक नहीं होगा।