बुद्धि परीक्षण निम्न तीन प्रकार के हैं-
- व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण
- सामूहिक बुद्धि परीक्षण
- क्रियात्मक बुद्धि परीक्षण
1. व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण (Individual intelligence test)
एक निश्चित समय में एक व्यक्ति का बुद्धि परीक्षण करना, वैयक्तिक परीक्षा कहलाती है। बिने-साइमन बुद्धि परीक्षा के अतिरिक्त बैरल पामर की परीक्षा भी उपयोगी सिद्ध हुई है। इसमें 38 प्रश्न होते हैं, यह डेढ़ से साढ़े पांच वर्ष तक के बच्चों के लिये है। दो भिन्ने सोटा प्रिस्कूल स्केल भी इसी आयु वर्ग के लिये है। अमेरिका के डिटरमैन का प्रयास तथा बर्ट का प्रयास भी प्रशंसनीय है। 'वैशलट-बैलेबिन इन्टेलीजेन्स टेस्ट' तथा 'ड्रायन्स एमेन टेस्ट' आदि 10 वर्ष और इससे बड़े बालकों के लिये है।
2. सामूहिक बुद्धि परीक्षण (Group intelligence test)
प्रथम विश्व युद्ध (1974-1918) में सेना की भर्ती के लिये सामूहिक परीक्षा का प्रयोग किया गया ताकि योग्यता के अनुरूप वहाँ के सैनिकों एवं अधिकारियों का चयन किया जा सके। सामूहिक परीक्षा के लिये बिने एवं टरमैन के बुद्धि परीक्षण सिद्धान्तों को स्वीकार तो किया, परन्तु उनके आधार पर अलग से परीक्षाएँ निर्मित की गयी।
सामूहिक बुद्धि परीक्षण दो प्रकार की होती हैं-
- शाब्दिक या भाषायी परीक्षा (Verbal test)
- क्रियात्मक या नान-वर्बल परीक्षा (Non-verbal test)
अत: आर्मी अल्फा टेस्ट तथा आर्मी जनरल क्लासिफिकेशन टेस्ट का विकास क्रमशः प्रथम विश्व युद्ध एवं द्वितीय विश्व युद्ध में हुआ।
शाब्दिक परीक्षा (Verbal test) में कुछ प्रश्न या अभ्यास हल करने के लिये दिये जाते हैं, किन्तु अशिक्षित लोगों के लिये क्रियात्मक परीक्षा (Non-verbal test) का प्रयोग किया जाता है।
सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Group verbal test of intelligence)
जब एक समय में एक से अधिक व्यक्तियों की परीक्षा ली जाये, उसे सामूहिक बुद्धि परीक्षण कहते हैं। अमेरिका में आर्मी एल्फा परीक्षण, थॉर्नडाइक का CAVD परीक्षण तथा टरमैन मेकनेयर परीक्षण हैं। भारत में डॉ. जलोटा ने सन् 1972 में, डॉ. मोरे ने सन् 1921 डॉ. सी. एच. राइस ने हिन्दुस्तानी बिने कार्यात्मक परख, डॉ. भाटिया ने कार्यात्मक परख पत्र तैयार किये।
अशाब्दिक हिन्दी में निम्नलिखित बौद्धिक परीक्षाएँ उपलब्ध हैं-
- सामूहिक बुद्धि परीक्षण (12 से 18 वर्ष तक) निर्माणकर्ता पी. मेहता।
- साधारण मानसिक योग्यता (12 से 16 वर्ष तक) निर्माणकर्ता एस. जलोटा।
- शाब्दिक बौद्धिक परीक्षा (VIII, X एवं XI स्तर के लिये) निर्माणकर्ता यू. पी. ब्यूरो ऑफ साइक्लोजो।
- टेस्ट ऑफ जनरल मेण्टल एबिलिटी (10.से 16 वर्ष तक) निर्माणकर्ता शिक्षा विभाग, गोरखपुर विश्वविद्यालय।
- सी. आई. ई. शाब्दिक सामूहिक बुद्धि परीक्षा (11 से 14 वर्ष तक के बालकों के लिये) 4 परीक्षाएँ-निर्माणकर्ता सी. आई. ई. दिल्ली।
व्यक्तिगत अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण (Individual non-verbal test of intelligence)
इन परीक्षाओं में भाषा प्रयोग नहीं होता तथा एक समय में एक ही व्यक्ति की परीक्षा ली जाती है। इन परीक्षाओं से व्यक्ति का व्यवहार तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं का भी निरीक्षण किया जाता है। इसके लिये भाटिया का निष्पादन परीक्षण, कोहलर का ब्लाक डिजायन टेस्ट, आर्थर का निष्पादन परीक्षण तथा एलेक्जेण्डर का पास एलांग परीक्षण प्रचलित है।
सामूहिक अशाब्दिक वृद्धि परीक्षण (Group non-verbal test or intelligence)
इन परीक्षणों में भी भाषा का प्रयोग नहीं होता तथा एक समय में एक से अधिक व्यक्तियों की परीक्षा ली जाती है। इस वर्ग में मख्यत: आर्मी बीटा परीक्षण, शिकागो अशाब्दिक परीक्षण भाग-1, पिजन अशाब्दिक परीक्षण ए. आई. पी. 70/23 तथा रेवन प्रोग्रेसिव मैट्रिसेज परीक्षण आते हैं।
3. क्रियात्मक परीक्षण (functional testing)
उपर्युक्त दोनों (व्यक्तिगत बुद्धि परीक्षण, सामूहिक बुद्धि परीक्षण) प्रकार के परीक्षणों द्वारा केवल शिक्षित व्यक्तियों की ही परीक्षा ली जाती थी। उन व्यक्तियों के परीक्षण का कोई प्रबन्ध नहीं था, जो भाषा का प्रयोग नहीं करते थे, जैसे-गूंगे, बहरे, अन्धे तथा अशिक्षित व्यक्ति। अत: क्रियात्मक परीक्षण इस प्रकार के लोगों के लिये सफल रहा। इन प्रश्नों का उत्तर देने पर कोई कार्य करना पड़ता था। इस प्रकार परीक्षार्थी के आत्मविश्वास, दृढ़ता, धैर्य एवं स्थान अन्तर्दृष्टि की जाँच ठीक प्रकार से हो जाती थी।
क्रियात्मक परीक्षण के प्रकार
प्रमुख प्रकार के क्रियात्मक परीक्षण इस प्रकार हैं-
(i) आकृति फलक परीक्षण (Form board test)
इस परीक्षण के आविष्कार का श्रेय सैंग्विन (Sangvin) को है। उन्होंने लकड़ी के एक तख्ते में विभिन्न आकृतियों को फिट करने योग्य स्थान बनवाये तथा अलग से त्रिभुजाकार, गोलाकार, अर्द्धगोलाकार, चतुर्भुजीय एवं त्रिकोणीय आदि आकार बनवाये।
अब परीक्षार्थी से नियत समय में इन आकृतियों को तख्ते में फिट करने को कहा जाता है। जो जितना शीघ्र इन आकृतियों को सही स्थान पर फिट कर देता है वह तीव्र बुद्धि का माना जाता है, जो यह नहीं कर पाता वह बुद्धि में हीन माना जाता है।
(ii) चित्रांकन परीक्षा (Picture drawing test)
इस परीक्षा में बालक को मनुष्य, हाथी, घोडा एवं कत्ता आदि के चित्र खींचने को कहा जाता है तथा चित्र पर अंक पूर्णता के आधार पर दिये जाते हैं। सुन्दरता के आधार पर नहीं। चित्रांकन परीक्षण 1 से 10 वर्ष के बालकों के लिये उपयुक्त होता है।
(iii) चित्र पूर्ति परीक्षण (Picture completion test)
चित्र पूर्ति परीक्षण परे चित्र में से कुछ वर्गाकार टुकड़े काटकर अलग रख दिये जाते हैं तथा बालक से कहा जाता है कि वह भिन्न-भिन्न टकड़ों को यथास्थान रख दे जिससे चित्र पूर्ण हो जाय। जो बालक शीघ्र तथा ठीक प्रकार इन टुकड़ों को लगाकर चित्र पूरा कर देता है, उसे तीव्र बुद्धि वाला माना जाता है। इस परीक्षण में बालकों की कल्पनाशीलता तथा तत्परता की जाँच होती है।
(iv) वस्तु संयोजन परीक्षण (Object assembly test)
इस परीक्षण का प्रयोग वैशलर (Weschlar) ने किया है। उनकी वैशलर-वैलेव्यू की बुद्धि परीक्षण में (Weschlar believe intelligence test) में मानव-आकृति के पार्श्व-चित्र और हाथ के तीन अलग-अलग पटल होते हैं, जिनके अनेक अफकड़ों को मिलाकर पूरा आकार बनाना पड़ता है।
(v) भूल-भुलैया परीक्षण (Maze test)
सबसे पहले पोर्टियस (Portius) ने इस विधि का प्रयोग किया। इसमें सादा रंगों से चित्र बना रहता है तथा निर्दिष्ट स्थान पर पहुँचने के लिये बालक को खुले मार्ग में से बीच में होकर पेन्सिल से मार्ग बताना पड़ता है। बन्द गली के पार जाने की मनाही है। जो बालक बिना बन्द गली से भटककर नहीं लौटते तथा शीघ्र एवं सही मार्ग बताते हैं वे तीव्र बुद्धि के माने जाते हैं।
उपर्युक्त व्यावहारिक परीक्षाएँ स्थूल वस्तुओं से सम्बन्ध रखती हैं अत: परीक्षाएँ बालक के प्रत्यक्षीकरण (Perception) शक्ति की जाँच करती हैं, क्योंकि हमारी ज्ञानेन्द्रियां एवं कामेन्द्रियां ही अनुभव एवं ज्ञान की वाहक है। अत: उपर्युक्त परीक्षाएँ बुद्धि की परीक्षा करती है। इनका प्रयोग अशिक्षित व्यक्तियों या छोटे बालकों पर किया जाता है।
क्रियात्मक परीक्षाओं में परीक्षार्थी को लकड़ी या गत्ते के टुकड़े के नमूने बनाने को दिये जाते थे। अल्प समय में उन टुकड़ों को यथास्थान लगाना होता था। इसमें भूल-भुलैया विधि से बुद्धि की परीक्षा ली जाती थी। अनेक बार दर्पण में भी दिखाकर किसी आकृति को बनाने के लिये कहा जाता था।