बाल विकास का अर्थ
किसी बालक के विकास से आशय शिशु के गर्भाधान (गर्भ में आने) से लेकर पूर्ण प्रौढ़ता प्राप्त करने की स्थिति से है।
पितृ सूत्र (Sperms) तथा मातृ सूत्र (Ovum) के संयोग से एक जीव उत्पन्न होता है। तत्पश्चात् उसके अंगों का विकास होता है। यह विकास की प्रक्रिया लगातार चलती रहती है। इसी के फलस्वरूप बालक विकास की विभिन्न अवस्थाओं से गुजरता है। परिणामस्वरूप बालक का शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक विकास होता है।
हम पूर्व में बता चुके हैं(बाल विकास की प्रक्रति) कि विकास बढ़ना नहीं है अपितु परिपक्वतापूर्ण परिवर्तन है। बालकों में परिवर्तन एक अनवरत न दिखने वाली प्रक्रिया है, जो निरन्तर गतिशील है।
अन्य शब्दों में, "विकास बड़े होने तक ही सीमित नहीं है, वस्तुत: यह व्यवस्थित तथा समानुगत प्रगतिशील क्रम है, जो परिपक्वता प्राप्ति में सहायक होता है।"
हरलॉक (Hurlock) के अनुसार, "बाल विकास में प्रमुख रूप से बालक के स्वरूप, व्यवहार, रुचियों और उद्देश्यों में होने वाले विशेष परिवर्तनों के अनुसन्धान पर बल दिया जाता है, जो बालक के एक विकास कालक्रम से दूसरे विकास कालक्रम में प्रवेश करते समय होते हैं। बाल विकास के अध्ययन में यह जानने का प्रयल किया जाता है कि यह परिवर्तन कब और क्यों होते हैं? यह परिवर्तन व्यक्तिगत हैं या सार्वभौमिक हैं।"
बाल विकास की प्रकृति
प्राणी के गर्भ में आने से लेकर पूर्ण प्रौणता प्राप्त होने की स्थिति ही मानव विकास है। पिता के सूत्र (Sperms) तथा माता के सूत्र (Ovum) के संयोग (यौन सम्पर्क) से जीवोत्पत्ति होती है।
बालक लगभग 9 माह अर्थात् 280 दिन तक माँ के गर्भ में रहता है और तब से ही उसके विकास की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। उसके सभी अंग धीरे-धीरे पुष्ट तथा विकसित होने लगते हैं, जब भ्रूण विकसित होकर पूर्ण बालक का स्वरूप ग्रहण कर लेता है तो प्राकृतिक नियमानुसार उसे गर्भ से पृथ्वी पर आना ही पड़ता है तब बालक के विकास की प्रक्रिया प्रत्यक्ष रूप में विकसित होने लगती है।
बालक के विकास पर वंशानुक्रम के अतिरिक्त वातावरण का भी प्रभाव पड़ने लगता है।
मुनरो के शब्दों में, "परिवर्तन श्रृंखला की वह अवस्था, जिसमें बच्चा भ्रूणावस्था से लेकर प्रौढ़ावस्था तक गुजरता है, विकास कहलाती है।"
बाल विकास का अर्थ किसी बालक के मोटे-पतले या बड़े तथा भारयुक्त होने से नहीं है, अपितु परिपक्वता की ओर निश्चित परिस्थितियों में बढ़ने से है। यह एक प्रगतिशील तथा विकसित परिवर्तन की बढ़ती हुई स्थिति है। यह एक प्रगतिशील दिशा है, जो निरन्तर अबाध गति से चलती रहती है और जिसमें तनिक भी विराम नहीं है। यह एक निरन्तर गतिशील प्रक्रिया है। जिसमें विकास के उच्चतर प्रगतिशील तत्त्व विद्यमान रहते हैं।
गैसेल के अनुसार, "विकास सामान्य प्रयत्न से अधिक महत्त्व रखता है, विकास का अवलोकन किया जा सकता है और किसी सीमा तक इसका मापन एवं मूल्यांकन भी किया जा सकता है, जिसके तीन रूप होते हैं-(1) शरीर निर्माण,(2) शरीरशास्त्र एवं(3) व्यवहार के चिह्न।"
किसी बालक के व्यवहार के चिह्न, उसके विकास के स्तर एवं शक्तियों की विस्तृत रचना करते हैं।
बाल विकास के प्रमुख उद्देश्य
बाल विकास की प्रक्रिया को अध्ययन का विषय बनाने के पीछे मनोवैज्ञानिकों एवं शिक्षाशास्त्रियों ने अनेक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित किये हैं। बाल विकास की प्रक्रिया का ज्ञान प्रत्येक अभिभावक एवं शिक्षक को होना चाहिये क्योंकि बाल विकास की प्रक्रिया के ज्ञान के अभाव में कोई भी शिक्षक अपने दायित्व को पूर्ण नहीं कर सकता।
बाल विकास के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- बाल विकास के द्वारा प्रत्येक शिक्षक को यह ज्ञान कराया जाता है कि वह सन्तुलित बाल विकास की प्रक्रिया में किस प्रकार अपना सहयोग प्रदान कर सकते हैं?
- बाल विकास के द्वारा बालकों के विकास में उत्पन्न विभिन्नताओं का ज्ञान शिक्षक एवं अभिभावकों को कराया जाता है।
- बाल विकास का प्रमुख उद्देश्य बालकों के सन्तुलित विकास के लिये मार्ग प्रशस्त करना है, जिससे कि वे पूर्णतः विकास को प्राप्त कर सकें।
- बाल विकास के द्वारा छात्रों के चहुँमुखी विकास की योजना तैयार की जाती है, जिससे उसका व्यक्तित्व निखर सके।
- बाल विकास का उद्देश्य बालकों के विकास पर पड़ने वाले विभिन्न कुप्रभावों को दूर करना है, जिससे बालकों का सर्वांगीण विकास किया जा सके।
- बाल विकास के द्वारा बालों के विकास में उत्पन्न अनेक शारीरिक एवं पारिवारिक समस्याओं का ज्ञान करते हुए उन्हें दूर करने का प्रयास किया जाता है।
- बाल विकास का प्रमुख उद्देश्य उसमें अन्तर्निहित शक्तियों का पूर्ण विकास करना है, जिससे वह एक कुशल नागरिक बन सके।
- बाल विकास का उद्देश्य बालक के विकास की उस प्रथम सीढ़ी अक्षित नींव को सुदृढ़ करना है, जिस पर कि विकास का भव्य भवन निर्मित होता है।
- बाल विकास का उद्देश्य बालकों को शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से श्रेष्ठता प्रदान करना है, जिससे कि वह समाज एवं राष्ट्र के विकास में अपनी भूमिका का निर्वाह कर सकें।
- बाल विकास का प्रमुख उद्देश्य बालकों में प्रारम्भकाल से ही स्वस्थ मन एवं शरीर का विकास करना है, जिससे कि बालक सामाजिक, मानवीय एवं नैतिक गुणों से परिपूर्ण हो सके।
उपरोक्त विवेचनसे यह स्पष्ट होता है कि बाल विकास का उद्देश्य बालकों के लिये चहुमुंखी विकास का मार्ग आलोकित करना है तथा इस मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करना है, जिससे कि बालक सन्तुलित रूप में प्रकाशित होते हुए देश एवं समाज के विकास में अपना योगदान दे सकें।