धात्विक अथवा अन्तराकाशी हाइड्राइड
अनेक संक्रमण तथा आन्तरिक संक्रमण धातुएँ और Be तथा Mg हाइड्रोजन को अपने जालक के अन्तराकाश में अवशोषित करके धातु जैसे हाइड्राइड जिन्हें अन्तराकाशी हाइड्राइड भी कहते हैं, बनाती हैं। ये धातुएँ हाइड्रोजन को अवशोषित कर लेती हैं। हाइड्रोजन परमाणु का आकार छोटा होने के कारण यह इन धातु जालकों के अन्त:कोशों में स्थान ग्रहण कर लेता है। इनका रासायनिक संघटन परिवर्तनशील होता है। इस कारण ये हाइड्राइड अरससमीकरणमितीय होते हैं। वर्ग 3, 4 और 5 की संक्रमण धातुएँ धात्विक हाइड्राइड बनाती हैं। वर्ग 6 में क्रोमियम भी एक हाइड्राइड बनाता है। इसके पश्चात् इसमें एक अन्तराल बन जाता है क्योंकि सातवें, आठवें तथा नौवें वर्ग की धातुएँ इस प्रकार के हाइड्राइड नहीं बनाती हैं। चूँकि इनके गुण मातृ धातु से मिलते हैं, अतः इन्हें धात्विक हाइड्राइड कहते हैं। इनमें हाइड्रोजन की न्यूनता के कारण लवणीय हाइड्राइडों के विपरीत ये सदैव अरससमीकरणमितीय होते हैं।
उदाहरण
LaH2.87, YbH2.55, TiH1.5-1.8, ZrH1.3-1.75, VH0.56 आदि। ऐसे हाइड्राइडों में स्थिर संघटन का नियम लागू नहीं होता है।
पूर्व में यह सोचा जाता था कि इन हाइड्राइडों के धातु जालक में हाइड्रोजन परमाणु अन्तराकाशी स्थिति ग्रहण करते हैं जिससे इनमें बिना किसी परिवर्तन के विकृति उत्पन्न हो जाती है। इसलिए इन्हें अन्तराकाशी हाइड्राइड कहा गया यद्यपि बाद में अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ कि वर्ग 7, 8,9 (अथवा VIII वर्ग) के तत्व Fe, Co, Ni, Te, Ru, Rh, Re, Os तथा Ir के हाइड्राइड को छोड़कर अन्य हाइड्राइड अपने जनक धातु की तुलना में भिन्न जालक रखते हैं। इनको 150-400°C ताप पर धातु के साथ हाइड्रोजन के सीधे अवशोषण से या धातु ऑक्साइडों के विद्युत अपचयन द्वारा बनाया जा सकता है। धात्विक हाइड्राइड धातु से हल्के तथा विद्युत व ऊष्मा के अच्छे चालक होते हैं। इनमें धात्विक गुण होता है तथा इनकी अपचायक सामर्थ्य प्रबल होती है जो हाइड्रोजन की परमाण्वीय अवस्था को इंगित करती है। इनके घनत्व मातृ धातु के घनत्व से कम होते हैं क्योंकि अन्तराकाशीय हाइड्रोजन, धात्विक जालक को फैला देती है।