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Pratham Singh in Chemistry
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विलेयता गुणनफल की परिभाषा दीजिए।

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Deva yadav
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विलेयता गुणनफल

द्वितीय समूह तथा चतुर्थ समूह के सल्फाइडों का अवक्षेपण-द्वितीय समूह के सल्फाइड HCI की उपस्थिति में तथा चतुर्थ समूह के सल्फाइड NH4OH की उपस्थिति में अवक्षेपित होते हैं। द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों का विलेयता गुणनफल चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों की अपेक्षा बहुत कम होता है। इसलिए यदि H2S प्रवाहित करने से पहले HCI न मिलाया जाए तो द्वितीय समूह के मूलक तो अवक्षेपित हो ही जाएँगे, इसके साथ-साथ चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइड भी आंशिक रूप से अवक्षेपित हो जाते हैं। अत: इनका द्वितीय समूह के सल्फाइड के साथ अवक्षेपण रोकने के लिए HCI मिलाकर ही H2S प्रवाहित की जाती है।
HCI की उपस्थिति में H2S का आयनन सम-आयन प्रभाव के कारण कम हो जाता है।

HCl ⇌H+ + Cl
H2S ⇌ 2H+ + S2-

इससे विलयन में बहुत कम S2- आयन उत्पन्न होते हैं, परन्तु द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों का विलेयता गुणनफल बहुत कम होता है, अत: S2- आयनों का यह सान्द्रण द्वितीय समूह के मूलकों के सल्फाइडों को अवक्षेपित करने के लिए पर्याप्त होता है, परन्तु चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों का अवक्षेपण S2- आयनों के कम सान्द्रण होने के कारण नहीं हो पाता। इसलिए वे विलयन में ही रहते हैं। परन्तु NH4OH की उपस्थिति में H2S प्रवाहित करने पर H2S का आयनन बढ़ जाता है, क्योंकि NH4OH से प्राप्त OH आयन, H2S से प्राप्त H+ आयनों से संयोग करके जल बनाते हैं।

2NH4OH ⇌ 2NH+4 +2OH
H2S ⇌ S2- +2H+
2H+ + 2OH ⇌ 2H2O

इससे H+आयन कम हो जाते हैं और H2S का आयनन बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप विलयन में S2-
आयन का सान्द्रण बढ़ता है। इस प्रकार बढ़े S2- आयन का सान्द्रण तथा विलयन में उपस्थित चतुर्थ समूहों के मूलकों के सान्द्रण का गुणनफल चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइडों के विलेयता गुणनफल से काफी अधिक हो जाता है। इसके कारण चतुर्थ समूह के मूलकों के सल्फाइड पूर्णतया अवक्षेपित हो जाते हैं।

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