द्रव्य की कणिक प्रकृति
हम जानते हैं कि सभी भौतिक वस्तुएँ द्रव्य से बनी हुई हैं परन्तु द्रव्य किससे बना हुआ है? इस प्रश्न का उत्तर मानव प्राचीनकाल से ही खोजता आया है। ईसा से 500 वर्ष पूर्व भारतीय महर्षि कणाद ने यह विचार व्यक्त किया था कि द्रव्य असतत हैं अर्थात् द्रव्य अतिसूक्ष्म अभिकारक कणों से बना हुआ है। ईसा से पूर्व पाँचवीं शताब्दी में यूनानी दार्शनिक डेमोक्रेटस ने तथा ईसा से पूर्व प्रथम शताब्दी में रोम के दार्शनिक ल्यूक्रिटस ने भी यही विचार व्यक्त किये थे कि द्रव्य अतिसूक्ष्म अविभाज्य कणों से बना हुआ है। इस प्रकार यह सिद्ध हुआ कि द्रव्य की प्रकृति कणिक होती है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में भी कुछ रसायनशास्त्रियों ने द्रव्य की कणिक प्रकृति सम्बन्धी परिकल्पनाएँ दी। परन्तु 19 वीं शताब्दी से पूर्व तक द्रव्य की रचना के सम्बन्ध में व्यक्त किये गये विचार केवल सपना मात्र थे। सन् 1803 में जॉन डॉल्टन ने सर्वप्रथम परमाणु परिकल्पना के आधार पर द्रव्य की कणिक प्रकृति को सिद्ध किया। अभी यह परमाणु परिकल्पना प्रयोगों और प्रेक्षणों के परिणामों पर आधारित थी। इस प्रकार सिद्ध हुआ कि द्रव्य की प्रकृति कृणिक होती है अर्थात् यह अविन्यास कणों (परमाणुओं) से निर्मित होता है।