प्रायद्वीपीय पठार भारतीय भू-भाग का प्राचीनतम हिस्सा है। अतः इस क्षेत्र की ज्यादातर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इस क्षेत्र में पश्चिमी घाट श्रेणी जल-विभाजक का कार्य करती है,
जो इस क्षेत्र के जल-प्रवाह को दो भागों में विभक्त करती है
- अरब सागर में गिरने वाली नदियाँ
- बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ
पश्चिमी घाट पर्वत श्रेणी से इस क्षेत्र की नदियों का उद्गम होता है। ढाल के अनुरूप मार्ग बनाती हुई, इस क्षेत्र की नदियाँ अरब सागर अथवा बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इस क्षेत्र में अपरदन कम होने के कारण इस क्षेत्र की नदियों की घाटियाँ चौड़ी एवं उथली हैं। इसका कारण यह है कि इस प्रदेश का ढाल बहुत मंद है जिससे इस क्षेत्र की नदियाँ केवल पार्श्ववर्ती अपरदन ही करने में सक्षम होती हैं। अतः ये अपनी घाटियों को नीचे की ओर गहराई में नहीं काट पाती हैं। इस पठारी प्रदेश में कहींकहीं जल-प्रपात मिलते हैं। इनमें शिवसमुद्रम तथा जोगप्रपात मुख्य हैं।
शिवसमुद्रम जलप्रपात कावेरी नदी पर स्थित है और लगभग मी ऊँचा है। जोगप्रपात की ऊँचाई लगभग 255 मी है। यह शरावती नदी पर स्थित है। इस प्रपात पर ही महात्मा गाँधी प्रोजेक्ट बनाया गया है। इस प्रदेश की नदियाँ अधिकतर डेल्टा बनाती हैं। महानदी, कृष्णा, गोदावरी तथा कावेरी नदियों के डेल्टा प्रसिद्ध हैं। प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी भाग का ढाल उत्तर की ओर होने से इस भाग की नदियाँ उत्तर की ओर बहकर यमुना तथा गंगा नदी तंत्र में सम्मिलित हो जाती हैं। इस भाग की प्रमुख नदियाँ चंबल, सोन तथा बेतवा हैं जो विंध्याचल-सतपुड़ा पर्वत श्रेणी से निकलती हैं।