मानसूनों के विषय में प्राचीन मत यही था कि इसका सम्बन्ध केवल धरातलीय पवनों से ही है, परन्तु आधुनिक अनुसन्धानों से ज्ञात हुआ है कि ऊपरी जेट पवनें मानसून के रचना तन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। मौसम वैज्ञानिकों को प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के ऊपर होने वाले मौसम सम्बन्धी परिवर्तनों के पारस्परिक सम्बन्धों की जानकारी प्राप्त हुई है। उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर के उपोष्ण कटिबन्धीय प्रदेश में जिस समय कयुभार अधिक होता है उसी समय हिन्द महासागर. के दक्षिणी भाग में वायुभार कम रहता है। ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति भी बदलती रहती है। विषुवत् । वृत्त के आर-पार पवन-पेटियों के खिसकने तथा इनकी तीव्रता से मानसून प्रभावित होता है। 20° दक्षिणी अक्षांशों से लेकर 20° उत्तरी अक्षांशों के मध्य में स्थित उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों पर मानसून का प्रसार रहता है, परन्तु भारतीय उपमहाद्वीप में इन पर हिमालय पर्वतश्रेणियों का बहुत प्रभाव पड़ता है। इनके प्रभाव से पूरा भारतीय उपमहाद्वीप विषुवतीय आर्द्र पवनों के प्रभाव में आ जाता है। मानसूनों का यह प्रभाव 2 से 5 माह तक बना रहता है। यहाँ जून से सितम्बर तक 75% से 90% तक वर्षा इसी मानसून तन्त्र के कारण होती है।