प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय क्षेत्रों पर पतली सँकरी पट्टी के रूप में जो मैदान फैले हैं, उन्हें समुद्रतटीय मैदान कहते हैं। ये क्रमश: पश्चिमी तथा पूर्वी समुद्रतटीय मैदान कहलाते हैं। इनका आर्थिक महत्त्व अग्रवत् है
1. पश्चिमी तटीय मैदान–प्रायद्वीप के पश्चिम में खम्भात की खाड़ी से लेकर कुमारी अन्तरीप तक इस मैदान का विस्तार है। नर्मदा तथा ताप्ती यहाँ की प्रमुख नदियाँ हैं। नदियों के मुहानों पर बालू जम जाने से यहाँ लैगून निर्मित होते हैं। इनमें मछलियाँ पकड़ी जाती हैं। उपयुक्त जलवायु तथा उत्तम मिट्टी के कारण यहाँ चावल, आम, केला, सुपारी, काजू, इलायची, गरम मसाले, नारियल आदि की फसलें उगायी जाती हैं। सागर तट पर नमक बनाने तथा मछलियाँ पकड़ने का व्यवसाय भी पर्याप्त रूप में विकसित हुआ है। भारत के प्रमुख पत्तन इन्हीं मैदानों में स्थित हैं। काण्दला, मुम्बई (न्हावाशेवा) व कोचीन इस तट के प्रमुख बन्दरगाह हैं।
2. पूर्वी तटीय मैदान–प्रायद्वीपीय पठारों के पूर्वी किनारों पर बंगाल की खाड़ी के तट तक तथा पूर्वी घाट के मध्य प० बंगाल से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक पूर्वी तटीय मैदानों का विस्तार है। इस मैदान में महानदी, गोदावरी, कृष्णा एवं कावेरी नदियों के डेल्टा विकसित हुए हैं। डेल्टाओं में नदियों से अनेक नहरें निकाली गयी हैं, जो सिंचाई का महत्त्वपूर्ण साधन हैं। यह तटीय मैदान उपजाऊ है तथा कहीं-कहीं पर काँप मिट्टी से ढका है। यह मैदान कृषि की दृष्टि से बड़ा अनुकूल है। चावल, गन्ना, तम्बाकू व जूट इस मैदान की मुख्य उपज हैं।