संसार में विभिन्न प्रकार के जीव मिलते हैं। इनके मध्य जटिल पारिस्थितिकीय सम्बन्ध, प्रजातियों के मध्य आनुवंशिक विविधता तथा अनेक प्रकार के पारितन्त्र आदि सम्मिलित हैं। जैव विविधता में तीन प्रमुख स्तर हैं
1. आनुवंशिकीय जैव विविधता (Genetic biodiversity),
2. जाति विविधता (Species diversity),
3. समुदाय व पारितन्त्र विविधता (Community and Ecosystem diversity)। ये सभी स्तर एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं, परन्तु इन्हें अलग से जाना व पहचाना जा सकता है
1. आनुवंशिकीय विविधता–प्रत्येक जाति चाहे जीवाणु हो या बड़े पादप अथवा जन्तु आनुवंशिक सूचनाओं को संचित रखते हैं, जो जीन में संरक्षित होती हैं। उदाहरण के लिए माइकोप्लाज्मा में लगभग 450.700 जीन।।
2. जाति विविधता–जाति, विविधता की पृथक् व निश्चित इकाई है। प्रत्येक जाति इकोसिस्टम अथवा पारितन्त्र में महत्त्वपूर्ण है। अतः किसी भी जाति की विलुप्तता पूरे पारितन्त्र पर प्रभाव डालती है। जाति विविधता किसी निश्चित क्षेत्र के अन्दर जातियों में विभिन्नता है। जाति की संख्या प्रति इकाई क्षेत्रको जाति धन्यता कहते हैं। जितनी जाति धन्यता अधिक होती है उतनी ही जाति विविधता अधिक होती है। प्रत्येक जाति के जीवों की संख्या भिन्न हो सकती है। इससे समानता (equality) पर प्रभाव पड़ता है।
3.समुदाय व पारितन्त्र विविधिता–समुदाय के स्तर पर पारितन्त्र में विविधता तीन प्रकार की होती है
(अ) एल्फा विविधता–यह विविधता समुदाय के अन्दर होती है। इस प्रकार की विविधता एक ही आवास व समुदाय में मिलने वाले जीवों के मध्य मिलती है। समुदाय/आवास बदलते ही जाति भी बदल जाती है।
(ब) बीटा विविधता–समुदायों व प्रवासों के मध्य बदलते जाति के विभव को बीटा विविधता कहते हैं। समुदायों में विभिन्न जातियों के संघटन में भिन्नता मिलती है।
(स) गामा विविधता-भौगोलिक क्षेत्रों में मिलने वाली सभी प्रकार जैव विविधता को गामा विविधता कहते हैं।