घाटी समीर-दिन के समय सूर्याभिमुखी पर्वतों के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। इस स्थिति में वायु घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाती है। इस स्थिति में वायु घाटी तल से पर्वतीय ढाल की ओर प्रवाहित होने लगती है। इसलिए इसे घाटी समीर या दैनिक समीर कहते हैं।
पर्वत समीर-सूर्यास्त के पश्चात् पर्वतीय ढाल पर भौमिक विकिरण ऊष्मा तेजी से होता है। इस कारण ढाल की ऊँचाई से ठण्डी और घनी हवा नीचे घाटी की ओर उतरने लगती है। यह प्रक्रिया चूँकि रात्रि में होती है अतः पवनों की इस व्यवस्था को पर्वत समीर या रात्रि समीर कहते हैं।