चारो आश्रमों का सर्वप्रथम उल्लेख ‘जाबालोपनिषद‘ ग्रंथ में मिलता हैं। जाबालोपनिषद शुक्ल यजुर्वेदीय शाखा के अन्तर्गत एक गौण उपनिषद है। यह उपनिषद बीस संन्यास उपनिषदों में से एक है। इसकी रचना ईसापूर्व 300 ई के पहले हुई थी और यह सबसे प्राचीन उपनिषदों में से एक है। इसमें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति के लिए सांसारिक जीवन से संन्यास लेने की बात कही गयी है।
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