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YASH SONI in इतिहास
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किस बौद्ध ग्रंथ से यह पता चलता है कि छठी शताब्दी ई. पू. 16 महाजनपद (क्षेत्रीय राज्य) विद्यमान थे ?

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Durai
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अंगुनरनिकाय में, बौद्ध और जैन धर्म  के आरंभिक ग्रंथों में 16 महाजनपद  का उल्लेख मिलता है। जनपद शब्द का अर्थ है ऐसा भू-खंड जहाँ “जन” अथवा लोग अपने पांव रखते हों ,अर्थात बस  गये हों। इस शब्द का प्रयोग संस्कृत एवं प्राकृत दोनों भाषाओँ में मिलता है। और इस प्रकार “महाजनपद” का अर्थ बड़ी राजनैतिक -भौगोलोक इकाइयों के तौर पर लिया जा सकता है।

महाजनपदों की संख्या 16 है, इन 16 महाजनपदों में सबसे बड़ा महाजनपद मगध को कहा जाता है।

कई महाजनपद उत्तर वैदिक काल (ल. 1100 ई.पू) से विकसित होने लगे थे, जिसमें कुरु राजवंश, कोसल राजवंश, पाञ्चाल राजवंश, विदेह राजवंश, मत्स्य राजवंश, चेदि राजवंश, प्राचीन मगध और गांधार राजवंश शामिल थे। 700 से 600 ई.पू के बीच यह जनपद और प्राचीन राजवंश महाजनपदों मे विकसित होने लगे थे।

8वीं से 6वीं शताब्दी ई.पू को प्रारम्भिक भारतीय इतिहास में एक प्रमुख मोड़ के रूप में माना जाता है। इस काल मे उत्तरी भारत में लोहे का व्यापक उपयोग किया जाने लगा था, जिसके कृषि का व्यवस्थित विकास हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सिन्धु घाटी सभ्यता के पतन के बाद प्राचीन भारत में दूसरी बार बड़े शहरों का उदय हुआ, जिसे द्वितीय शहरीकरण कहते हैं। द्वितीय शहरीकरण से ही महाजनपदों का उदय हुआ।

6वीं शताब्दी ई.पू से उत्तर भारत में श्रमण परम्परा का उदय हुआ, जिनमें जैन पन्थ, आजीविक पन्थ और अंत में बौद्ध पन्थ शामिल थे। उनके साहित्यिक स्रोत उस समय के इतिहास को जानने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। शुंग साम्राज्य के उदय के समय 185 ई.पू, तक यह नास्तिक परंपराएं तत्कालीन राज्यों की राजनीति और समाज में हावी बनी रही।

ये सभी महाजनपद आज के उत्तरी अफ़ग़ानिस्तान से बिहार तक और हिन्दुकुश से गोदावरी नदी तक में फैल हुए थे। दीर्घनिकाय के महागोविन्द सुत्त में भारत की आकृति का वर्णन करते हुए उसे उत्तर में आयताकार तथा दक्षिण में त्रिभुजाकार यानि एक बैलगाड़ी की तरह बताया गया है।

बौद्ध निकायों में भारत को पाँच भागों में वर्णित किया गया है - उत्तरापथ (पश्चिमोत्तर भाग), मध्यदेश, प्राची (पूर्वी भाग) दक्षिणापथ तथा अपरान्त (पश्चिमी भाग) का उल्लेख मिलता है। इससे इस बात का भी प्रमाण मिलता है कि भारत की भौगोलिक एकता ईसापूर्व छठी सदी से ही परिकल्पित है। इसके अतिरिक्त जैन ग्रंथ भगवती सूत्र और सूत्र कृतांग, पाणिनि की अष्टाध्यायी, बौधायन धर्मसूत्र (ईसापूर्व सातवीं सदी में रचित) और महाभारत में उपलब्ध जनपद सूची पर दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि उत्तर में हिमालय से कन्याकुमारी तक तथा पश्चिम में गांधार प्रदेश से लेकर पूर्व में असम तक का प्रदेश इन जनपदों से आच्छादित था।

ईसा पूर्व छठी सदी में वैयाकरण पाणिनि ने 22 महाजनपदों का उल्लेख किया है। इनमें से तीन - मगध, कोसल तथा वत्स को महत्वपूर्ण बताया गया है।

आरम्भिक बौद्ध तथा जैन ग्रंथों में इनके बारे में अधिक जानकारी मिलती है। यद्यपि कुल सोलह महाजनपदों का नाम मिलता है पर ये नामाकरण अलग-अलग ग्रंथों में भिन्न-भिन्न हैं। इतिहासकार ऐसा मानते हैं कि ये अन्तर भिन्न-भिन्न समय पर राजनीतिक परिस्थितियों के बदलने के कारण हुआ है। इसके अतिरिक्त इन सूचियों के निर्माताओं की जानकारी भी उनके भौगोलिक स्थिति से अलग हो सकती है। बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु में 16 महाजनपदों का उल्लेख है। जैन ग्रंथ में भी इनका उल्लेख है,जो इस तरह है–

काशी
कोशल
अंग (अङ्ग)
मगध
वज्जि
मल्ल
चेदि
वत्स
कुरु
पांचाल (पञ्चाल)
मत्स्य (या मछ)
शूरसेन/शूरसैनी (शौरसेनी)
अश्मक
अवन्ति
गांधार
कंबोज (या कम्बोज)

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