पुनर्जन्म के सिद्धान्त का प्रथम स्पष्ट आलेख वृहदारण्यक उपनिषद् ग्रन्थ में प्राप्त है। बृहदारण्यक उपनिषद् शुक्ल यजुर्वेद से जुड़ा एक उपनिषद है। यह अद्वैत वेदान्त और संन्यासनिष्ठा का प्रतिपादक है। यह उपनिषदों में सर्वाधिक बृहदाकार है तथा मुख्य दस उपनिषदों के श्रेणी में सबसे अंतिम उपनिषद् माना जाता है। ब्रह्मा इसकी सम्प्रदाय परम्परा के प्रवर्तक हैं।
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