बुद्ध की प्रथम प्रतिमा बनाने का श्रेय मथुरा कला को दिया जाता है। परंतु कुछ विद्वान कहते हैं कि, "गांधार कला शैली में महात्मा बुद्ध पहली मूर्ति बनाई गई थी परंतु यह कला शैली यूनानी और रोमन थी।"
भारत में पाई गई प्राचीनतम ऐतिहासिक मूर्ति चौथी-तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व मौर्य काल की है । इसकी सुस्पष्ट व विशाल शैली की यथार्थता में अखमानी फारस से खुलकर विदेशी तत्व लिए गए थे । महान बौद्ध सम्राट ने बलुआ पत्थर के एकाश्मिक स्तंभ खड़े करवाए । 30 से 40 फीट ऊँचे इन स्तंभों के शीर्ष वृषभ, सिंह व हाथी बने हुए थे तथा स्तंभ पर सदाचार, मानवता व पवित्रता के बौद्ध उपदेश अंकित किए गए थे । सम्राट अशोक चाहते थे कि उनकी प्रजा इन उपदेशों का अनुसरण करे । बिहार के लौरिया नंदनगढ़, सांची और सारनाथ में अशोक के प्रसिद्ध स्तंभ पाए गए हैं ।
इनमें सबसे असाधारण है सारनाथ में पाया गया, पॉलिश किया गया एकाश्मिक शीर्ष जो कि अब भारत सरकार का चिह्न है । इसमें चार दहाड़ते हुए सिंहों को चार प्रमुख दिशाओं की ओर मुँह किए हुए और एक दूसरे की ओर पीठ किए हुए दिखाया गया है । गोलाकार शीर्षफलक को चार धर्मचक्रों से अलंकृत किया गया है जिनके बीच में बारी-बारी से एक हाथी, एक वृषभ, एक घोड़े और एक सिंह को अत्यंत कुशलता से उत्कीर्ण किया गया है । शीर्षफलक का आधार घंटी के आकार का है जिसमें धर्मचक्र के साथ एक कमल है जो संभवत: मानव बल के आगे सच्चाई की जीत का प्रतीक है । आकृतियों की बेहतरीन बनावट यथार्थवादी और विशिष्ट होने के अलावा इनमें शक्ति और गरिमा भी निहित है जो कि मौर्य कला के अभिजात और अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप पर प्रकाश डालती है ।
कला का अध्ययन करने वाले लब्धप्रतिष्ठ छात्र के लिए शीर्ष पर ध्यानपूर्वक दृष्टि डालना अत्यंत लाभप्रद होगा । इसके ऊपर बने चार सिंह अत्यंत आकारगत व रूढ़ शैली के अनुसार अंकित किए गए हैं । यह सिंह की अयाल देखकर स्पष्ट हो जाता है जिसे लपटों के आकार के बालों के गुच्छे के गुच्छे के रूप में दर्शाया गया है जो कि स्वाभाविक न होकर रूढ़ शैली के अनुसार है । सिंहों का ऊपरी होंठ तीन उत्कीर्ण रेखाओं के माध्यम से दर्शाया गया है जो कि पुन: आकारिक व रूढ़ शैली के अनुसार हैं । हमें याद रखना चाहिए कि वह अशोक ही था जिसने मूर्तियों तथा स्मारकों के लिए पत्थरों का विस्तृत प्रयोग आरंभ किया जबकि विगत परंपरा पत्थर तथा मिट्टी से काम करने की थी ।
शीर्षफलक पर बने पशुओं को समीप से देखने पर पता चलता है कि ये स्थैतिक या दुर्नम्य नहीं हैं । प्रकृति में बड़े ध्यान से इन्हें देखकर इन्हें अत्यंत प्राकृतिक व जीवंत रूप से दर्शाया गया है ।
रामपुरवा, बिहार से प्राप्त वृषभ के आकार में शीर्ष भी तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का है और फारसी तथा भारतीय तत्वों का मिश्रण होने के कारण इकसा अध्ययन रोचक है । कमल शीर्ष पूर्ण रूप से आकारगत है । शीर्षफलक पर किए गए सुंदर अलंकरण में पुष्पिका (rosette) ताड़पत्राकार (palmetto) तथा कंट (acanthus) सरीखे आभूषण शामिल हैं जिनमें से कोई भी भारतीय नहीं है ।
लेकिन वृषभ शीर्ष का सर्वोच्च तत्व स्वयं वृषभ है जो कि भारतीय शिल्प कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है । इसमें ककुद् वाले वृषभ को बेहतरीन आकार दिया गया है । इसके मुलायम मांस, सुडौल पैर, संवेदनशील नथुने और चौकन्ने कानों को खूबसूरती से गढ़ा गया है ।
उड़ीसा में धौली नामक स्थान में अत्यंत कौशल से एक हाथी को इस प्रकार दर्शाया गया है मानो वह चट्टान से उभर रहा हो । इस चट्टान को इस प्रकार काटा गया है कि यह हाथी के सिर और सूँड़ सहित शरीर के अग्रभाग के समान दिखती है । दुर्भाग्यवश सही संरक्षण न होने के कारण इसकी दुर्दशा हो गई है । लेकिन फिर भी किसी चट्टान या विशाल पत्थर से इतने विशालकाय पशु की आकृति को गढ़ने की दिशा में पहला प्रयास होने के कारण यह रोचक है । किसी पशु का ऐसा चित्रण देश की देशी परंपरा के अनुसार है।