हिन्दु-मुस्लिम एकता के राजदूत कहकर मोहम्मद अली जिन्ना को सम्बोधित किया गया। जिन्ना ने हिन्दुओं और भारतीय मुसलमानों के मध्य छद्म एकता के प्रति उग्र इच्छा शक्ति दिखाते हुए अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। 1906 से 1916 तक अपने राजनीतिक जीवन के प्रथम दस वर्ष की समाप्ति पर उन्हें इस दृष्टिकोण के लिए सरोजिनी नायडू से हिन्दू-मुस्लिम एकता के राजदूत का उपनाम प्राप्त हुआ।
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