अलाउद्दीन ख़िलजी, भारतीय इतिहास के मध्यकाल के मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक और प्रमुख हुक्मरानों में से एक थे। उनका शासनकाल 13वीं सदी के आसपास था।
अलाउद्दीन ख़िलजी के धर्म उपेक्षा को समकालीन मुस्लिम आलोचना का अध्ययन करने वाले कुछ प्रमुख लेखकों के नाम निम्नलिखित हैं:
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जुआनी (Ibn Battuta): जुआनी, जिन्होंने अपने यात्रावृत्तांत में अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल का वर्णन किया, उन्होंने उनकी धर्म नीति को विवादात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। उन्होंने इसके बारे में यह उल्लेख किया कि अलाउद्दीन ख़िलजी ने हिन्दू धर्मियों के प्रति उत्तराधिकारिता दिखाई और उनके सामाजिक और आर्थिक जीवन में हस्तक्षेप किया।
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अफ़ग़ानी, सय्यद अहमद ख़ान (Sayyid Ahmad Khan): सय्यद अहमद ख़ान ने अपने ग्रंथ "असर-उल-सनादिद" में अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल को धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण से आलोचना की और उन्होंने उनके कई निर्णयों को विचारशीलता की दृष्टि से देखा।
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इस्लामी, मोहम्मद ख़ान (Mohammad Khan): मोहम्मद ख़ान ने अपने ग्रंथ "तारीख-ए-फ़ीरोज़शाही" में अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल के आलोचनात्मक परिप्रेक्ष्य में लिखा और उनकी धर्म नीति के संबंध में विचार किए।
इन लेखकों ने अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल के कई पहलुओं पर आलोचना की और उनके धर्म नीति को विवादात्मक रूप से प्रस्तुत किया है। इन आलोचनाओं में विभिन्न प्रतिस्थापनात्मक विचार व्यक्त किए गए हैं, और अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल की विशेषता को समझने में मदद मिल सकती है।
अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल के दौरान, उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिन्दू राज्यों पर आक्रमण किया और उन्हें अपने शासनकाल के अंदर अपने अधीन किया। उन्होंने अपने शासनकाल में धर्मिक और सामाजिक बदलाव किए, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने धर्म उपेक्षा की आलोचना का सामना भी किया।
कुछ मुस्लिम विद्वान और हिन्दू साहित्यकारों ने अलाउद्दीन ख़िलजी की शासन नीति को उनके धर्म उपेक्षा के लिए आलोचना की। वे कहते थे कि उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रति अनदेखा रखा और उनके धर्मिक स्थलों को नष्ट किया। इसके बावजूद, अलाउद्दीन ख़िलजी का शासन इतिहास के प्रकार में दर्ज किया जाता है, और वे मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर और अकबर के शासनकाल से पूर्व के हुक्मरानों के तरह धर्म के मामले में सुखद।
इसके बावजूद, यह बात याद रखनी चाहिए कि इतिहास में अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल का मौखिक और लिखित साक्षरता नहीं है, और उनके धर्मिक नीति के बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं।