चम्पारण जनपद में ‘तिनकठिया’ प्रथा का तात्पर्य किसानों द्वारा 3/20 भू-भाग पर नील की खेती करना था। तीनकठिया खेती अंग्रेज मालिकों द्वारा बिहार के चंपारण जिले के रैयतों (किसानों) पर नील की खेती के लिए जबरन लागू तीन तरीकों मे एक था। खेती का अन्य दो तरीका 'कुरतौली' और 'कुश्की' कहलाता था।
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